उठ भोर हुई - UTH BHOR HUI
कवि : हुलेश्वर प्रसाद जोशी
उठ भोर हुई तुम दौड़ चलो
आशा की किरण बहती है।
सूर्य नमः कहते चलो
लम्बा चौड़ा यह जीवन है।।
कर्म नित तुम करते रहो
खुशियाँ यूँ ही पलती हैं।
स्वच्छ जीवन व्यतीत करो
जीवन की नाव न चलती है।।
उठ भोर हुई तुम दौड़ चलो
सब इसी राह पर चलते हैं।
आशा भरे जीवन में
सपनों में दुनिया न चलती है।।
नदिया बहे न सागर भरे
न हृदय पिघलता है आँसू से।
क्या कोई कहे तो कुछ होता है?
जीवन में सभी तो रोते हैं।।
उठ भोर हुई तुम दौड़ चलो
जिंदगी अधूरी न होती है।
दुखों पर भी विजयी बनो
हार में कुछ जीत होती है।।
ना तुम गम रब से माँगों
जो सबको खुशियाँ देते हैं।
पश्चाताप कुछ मन में कर लो
जीवन पवित्र कर देते हैं।।
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काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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