वह कौन हैं जिसे अपनी बात बताऊँ।
वह कौन है जिसे अपने साथ
चलाऊँ।
वह कौन है जिससे रूठकर
मनाऊँ।
वह कौन है जिसे हर बात
में पकाऊँ।।
आप कह सकते हैं मुझसे अपनी बात।
कितने कठिन हों रास्ते चलूँगी साथ।
चाहे कितने रूठ जाएँ मुझसे, आप।
सँकल्प है मेरी
रहूँगी आपके साथ।।
धरती के उस पार से
निहारोगी कैसे ?
आकाशगँगा में दूर रहती ‘तुम’
आओगी कैसे ?
रेडियो संदेश भी मिलता है
बहुत देर से
फिर बताओ ?
वादा करके निभाओगी कैसे ?
धरती के इस पार हूँ तो क्या हुआ ?
आकाशगँगा की दूरी भी तो क्या हुआ ?
कोशिश करूँगी हर बार ऐसा....
मिलेंगे !
मुझे ऐसा एक विश्वास हुआ।।
जो उस दुनिया की महारानी
हैं आप।
गुरुत्वाकर्षण की
शक्तिकेंद्र हैं आप।
एक पल छोड़ आओगी तो बिखर
जाएगी जिंदगियाँ।
फिर बताओ
क्या मेरे अपने हैं आप ?
महारानी हूँ यह जानती हूँ।
शक्तिकेन्द्र हूँ यह भी भूली नही हूँ।
मन में तो मेरा ही अधिकार है साथी।
विश्वास का रिश्ता तुमसे ही निभाती हूँ।।
सोचो जरा
राज कोई जानेगा तो क्या होगा?
और न भी मिलेंगे
प्रत्यक्ष तो क्या होगा?
तो क्या प्रत्यक्ष दर्शन
और वार्ता
नहीं होगी आपके साथ?
ईश्वर भी तो अन्दर ही है
आपके भी रहने से क्या होगा?
विश्वास कीजिए
धैर्य रखिए
हर कण में हूँ
मैं आपके साथ।
तुम वहीं रहो
खुश रहो
झाँककर देखो
मैं भीतर ही हूँ आपके साथ।।
# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें