तेरी सावन घटा में - TERI SAVAN GHATA MEN
कवि : हुलेश्वर प्रसाद जोशी
छिनने में लगा हूँ तेरी चैन करार
छिन जाने दो।
अपनी ही पागल ‘पैरी’ बैरी को
छनक जाने दो।
वाह री वाह !
ठंडी हवा
तेरी जुल्फों से
आने दो।
भींग जाऊँ तेरी सावन घटा में
मुझे भींग जानें दो।।
लगने लगी है ‘आह !’
ठंड से, सिकुड जाने दो।
बांध कानों को ‘तेरी
चुनरी से’
लिपट जाने दो।
‘आह !’ गर्मी लगी है
तेरी साँसों में, लग जाने
दो।
भींग जाऊँ तेरी सावन घटा
में,
मुझे भीग जाने दो।।
भीग जाऊँ
पसीने से अगर
‘अहसास हो’ तो ठहर जाने दो।
पुरवइया चलनें लगेंगी
अभी तो छलक जाने दो।
वाह री वाह! तेरी ठंडी सिसकियाँ
फुट जाने दो।
भीग जाऊँ तेरी सावन घटा में
मुझे भींग जाने दो।।
आज ही तेरी यादों में
आह !
आह भर जाने दो।
लम्बी कतार न बनाओ
दिल के उस पार से
मुझे भी आ जाने दो ।
सिसकियाँ दूर चली जाएँगी
“आ”
मुझे भी “आ” जाने दो।
भीग जाऊँ तेरी सावन घटा
में
मुझे भींग जाने दो।।
----------------------------
# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
--------------------------------------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें