सुन्दर सखी दो - SUNDAR SAKHI DO
कवि : हुलेश्वर प्रसाद जोशी
सुन्दर सखी दो रे ‘कान्हा’
नहीं तो राधा को लौटाओ।
घुल-मिल जाऊँ उनसे
ऐसा रंग मुझमे मिलाओ।
रंगीनी-रंग
रसिया-रसदार
रसभरी मुझे बनाओ।
सुन्दर सखी दो रे ‘कान्हा’
नहीं तो राधा को लौटाओ।
ग्वालन सारी हृदय में
रखकर
तुम राधा को पठाओ।
हो जाऊँ अनस्तित्व ‘मैं’
ऐसा मेरा अस्तित्व बनाओ।
सखियाँ करें न पुकार
उन्हें!
सखियाँ उन्हें न दिलाओ।
सुन्दर सखी दो रे
‘कान्हा’
नहीं तो राधा को लौटाओ।
आखरी दिन हो ‘जीवन का
चाहे’
उस राधा से मिलाओ।
रखलो कान्हा कदम को तुम
ही
बावरी मीरा में सभाओ।
अमर न हो जाऊँ “अमृत से”
‘दुख होगा!’
जहर मुझे पिलाओ।
सुन्दर सखी दो रे
‘कान्हा’
नहीं तो राधा को लौटाओ।
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# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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