प्रथम स्पर्श - PRATHAM SPARSH
कवि : हुलेश्वर प्रसाद जोशी
“
तेरे होंठों की मुस्कान
ने मुस्कराई ।
इजहार करने को ललक जगाई ।
सहम गई थी तू जो छुवन से
मेरे ।
स्वर्ग के आनन्द सी
अनुभूति आई ।।
”
नन्ही परी सी लगती थी ‘वो’ ।
प्लूटो में रहती थी जो ।
कहाँ गुम हो गई हो तुम ?
‘बताओ न !’
‘हँसकर’ मेरा उपचार
करती थी वो।
कभी मीठे कभी सिट्ठे
‘चाह’ जो पिलाती थी।
उन कंटीली कंसरटीना में
राह नई दिखाती थी।
भरकर डल्लू जो
मीठा दूध पिलाती थी।।
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# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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