चीर-परिचित नहीं ‘मैं’
नवयौवन में समा जाऊँ।
सावन में सुन्दरता नहीं
सखियों में रमा जाऊँ।
इक जान से प्यारी
‘नन्हीं सी गुड़िया’
खिलौना मैं खिलाऊँ।
चीर-परिचित नहीं ‘मैं’
नवयौवन में समा जाऊँ।।
मेघालय से खोज
शिवालय से माँग लाऊँ।
सरित-सरोज
सरोवर-समुद्र
में समा जाऊँ।
कल खेलती सखियों की
टोली से चुरा लाऊँ।
चीर-परिचित नहीं ‘मैं’
नवयौवन में समा
जाऊँ।।
हारी हुई एक ‘बाजी’
को जीत जाउँ।
रोशनी सखि तुम्हारी
चाँद तारों से छीन लाऊँ।
किरण रहे न साथ तुम्हारी
तुमको जो मैं पाऊँ।
चीर-परिचित नहीं ‘मैं’
नवयौवन में समा जाऊँ।।
निशा बनी ‘कालरात्रि से’
सलामत तुम्हे मैं लाऊँ।
एक पावन बेला हो
सात फेरों की
बंधन में बंधा जाऊँ।
कोई रंगे चरित्र
न रंग से
रंगहीन तुम्हे मैं पाऊँ।
चीर-परिचित नहीं ‘मैं’
नवयौवन में समा
जाऊँ।।
# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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