मेरी समाधि में - MERI SAMAADHI MEN
कवि : हुलेश्वर प्रसाद जोशी
मोहन अपनी बाँसुरी अब फिर न बजाना।
चला आऊँगा तुम्हारे घर
तू भी चले आना।
राधिका को छोड़
‘उस तट में’
न बुलाना
द्वारिकाधीश मेरी समाधि
में समा जाना।।
राधिका भूल जाएगी
‘तुम्हें’
पर तुम न भुलाना।
यमुना नहीं है
अब यमुना को भूल जाना।
मीरा को लगी है
“प्यास”
चाहे विष ही पिलाना।
द्वारिकाधीश मेरी समाधि में समा जाना।।
राधा ने माँगी है
‘बाँसुरी’
फिर न बजाना।
मेरा हाल क्या है?
ये न भूल जाना।
अनिरुद्ध को राज देकर
‘न’ राधिका से मिलने जाना।
द्वारिकाधीश मेरी समाधि
में समा जाना।।
संकट नहीं ‘उसे’
कोई संकट न दे जाना।
बाँसुरी को भूल ब्रज में
चाहे चले आना।
चाहे हो जाए
शादी से पहले
‘मृत्यु’ कराना।
द्वारिकाधीश मेरी समाधि में समा जाना।।
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# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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