मेरे मन में - MERE MANN MEN
कवि : हुलेश्वर प्रसाद जोशी
आकर समा जाओ न मेरे मन में
आकर सुकून दो न मेरे मन
को
आकर बुझाओ न “प्यास” मेरे
मन की
आकर फिर न जो मेरे मन में
।
नाम का प्रभाव है तुम पर
कि नहीं चाहती ?
आशीष !
या फिर
आवश्यकता नहीं है तुम्हें ?
मेरे मन में लगी है आग
“प्यास की”
बुझाओ न इसे !
अभी कौन हो ?
जो बनना चाहती हो अर्धांगिनी
तब रहे न रहे प्यास
पिलाओगी “प्रेमानी”
लगता है
आज ही लिख दूँ !
सारी सुंदरता
या
मिठास प्रेम की
इक कहानी लिख दूँ !
दिन हो जाए न ‘रात’
आने न दूँ अंधेरी !
आनी हो तो आए चाँदनी
जो मिट जाए अंधेरी !
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# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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