मनखे अव रे भाई...मनखे कस ‘जी’ लव।
दुआभेदी तुम काबर करथव ? मनखे ल तो चीन्ह लव।
‘नफ़रत, घृणा अऊ छुआछूत’
नोहय हमर सिंगार।
मनखे अव रे भाई
मनखे ले कर लव पिंयार।
मनखे अव रे भाई... मनखे
कस ‘जी’ लव।
दुआभेदी तुम काबर करथव ? मनखे ल तो चीन्ह लव।
कुकुर चराए अउ टट्टी कराये बर
होत बिहनिया
जाग जाथव।
फेर दाई-ददा ल
एक गिलास पानी देहे बर
‘जीव ल’
काबर चोराथव ?
मनखे अव रे भाई... मनखे कस ‘जी’ लव।
दुआभेदी तुम काबर करथव ? मनखे ल तो चीन्ह लव ।
अन्न उगइया
किसान मन ल
‘भाई’
नीच तुमन कहिथव जी।
फ़ेर ख़ैरात के खवइया
जाँगरचोट्टा मन ल
महान कइसे समझथव जी ?
मनखे अव रे भाई... मनखे कस ‘जी’ लव।
दुआभेदी तुम काबर करथव ? मनखे ल तो चीन्ह लव।
गोबर-पिसाब ल पी के कइसे ?
पतित पावन हो जाथव जी।
मनखे के छुए ले कांही नई होवय
फेर कइसे छइन्हा म घलो
छूआथव जी ?
मनखे अव रे भाई... मनखे
कस ‘जी’ लव।
दुआभेदी तुम काबर करथव ? मनखे ल तो चीन्ह लव।
काबर घुमत हवव
धरे-धरे
जब्बर बरछी अउ तलवार।
गुसियाए-गुसियाए टिहक़त
हवव
अपन देवता के तो बन जव
चिन्हार।
मनखे अव रे भाई... मनखे
कस ‘जी’ लव।
दुआभेदी तुम काबर करथव ? मनखे ल तो चीन्ह लव।
भाई रे...
अगास म काबर ?
फ़ेंकत हव तलवार।
एक फूल तो गोंदा के फ़ेंकव
मिलहि तुँहला मया दुलार।
मनखे अव रे भाई... मनखे कस ‘जी’ लव।
दुआभेदी तुम काबर करथव ? मनखे ल तो चीन्ह लव।
धरम के नाव म
भाई तुमन
धरम ले काबर भटकत हव।
‘जम्मो जीव हे भाई-बहिनी
बरोबर’
फेर तुम ईंखरे जीव ल लेवत
हव ।
मनखे अव रे भाई... मनखे
कस ‘जी’ लव ।
दुआभेदी तुम काबर करथव ? मनखे ल तो चीन्ह लव ।
# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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