देख तो सँगी रे
कइसे कलजुग ह बउरावत हे।
भरे चउमास म ‘देख’
आमा ह मउरे लहलहावत हे।
गली के
कारी कुतिया घलो
बारो मास बियावत हे।
देख तो सँगी रे, कइसे कलजुग ह बउरावत हे।।
माता घलो कुमाता बनके
‘कोख म’
बेटी ल उजारत हे।
सुन्दरता के पाला पड़के
डब्बा के दूध पियावत हे।
अपन टेस देखाये खातिर
आया के
सुक्खा दुदु चुचरावत हे।
देख तो सँगी रे, कइसे
कलजुग ह बउरावत हे।।
नवा नेवरनिन पानी नई दै
सास-ससुर करलावत हे।
सास बिचारी ल
‘सुंवासा तियागे के’
बारा उदिम सुझावत हे।
वाह रे !
सहरिया-कलजुगी डऊकी
मेडुआ बनाके किंदारत हे।
देख तो सँगी रे, कइसे कलजुग ह बउरावत हे।।
बेटा ल देख तो सँगी
काबर ?
अपन धरम ल तियागत हे।
दाई-ददा बर दवई नइए
सँगवारी मन ल दारू म
नहवावत हे।
डउकी बर चिरहा पोलिका
लइका ल नगरा घुमावत हे।
देख तो सँगी रे, कइसे
कलजुग ह बउरावत हे ।।
नियाव के
‘गोठ ल’ बिसार दे सँगी
गरीबहा दुबर गोहरावत हे।
जेकर लाठी तेकरे बइला
पउआ-भर दारू म
नियाव ह
बेचावत हे।
बलतकार करइया
ठिठोली करथे ‘गरीबिन बेटी ल’
देखव
पँखा म फहरावत हे।
देख तो सँगी रे, कइसे कलजुग ह बउरावत हे ।।
रोमाँस करत हे बडका गुरुजी
चपरासी ह पहरा लगावत हे।
इसकुल के
इसपेलिंग नई जानँय
तेन पिरिंसपल कहावत हे।
किसान के इनटेलीजेन्ट
बेटा
त त त अर्रर चिल्लावत हे।
देख तो सँगी रे, कइसे
कलजुग ह बउरावत हे।।
देख तो सँगी रे
कइसे कलजुग ह बउरावत हे।
भरे चउमास म ‘देख’
आमा ह मँऊरे
बिजरावत हे।
गली के कारी कुतिया घलो
बारो मास बियावत हे।
देख तो सँगी रे, कइसे कलजुग ह बउरावत हे।।
# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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