काल ह सोझियावत हे - KAL HA SOJHIYAWAT HE
लागे हावय साध
चरोंटा भाजी
अऊ कोदई के भात।
सँग-सँग जीबे
जीवन सँगिनी
“भक्त” बनले आज।
एको घड़ी
पहावय नहीं
बनके मुंधियारी रात।
सँवर जाही
तोर जिनगानी
गठियाले अंतस म मोर बात।।
बइरी एके ठी
कहानी हे
मोर जिनगानी के।
मोर फुटहा करम
अऊ
लइकई के सँग मितानी के।
रईह रईह के
सुरता आथे
एक बात बचपानी के।
राह रे गडौना कहिथे
छोड़ बचपन के झूठ सियानी के।।
भीतरे भीतर
तन खोखला
दियार ह खावत हे।
मूढ़ता, गँवारी
अऊ
दरिद्रता म
जिनगी ह पहावत हे।
अच्छा करम नई करेंव अपन
जिनगानी म।
फेर काबर “बइरी”
मोर काल ह सोझियावत हे ।।
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# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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