जोशी की गीता - JOSHI KI GEETA
कवि : हुलेश्वर प्रसाद जोशी
असंगठित शब्द, बिना लय-छंद कविता।
एक आग्रह ‘विनती’ जोशी की गीता।।
झूठ फरेब कुरीति और आडम्बर।
नैसर्गिक न्याय सबके लिए बराबर ।
चोरी चकारी, झूठ लूट और डकैती।
धर्म नहीं है तुम्हारे बाप
की बपौती।।
धोखा अफवाह मोबलिंचिंग और हिंसा।
एक रास्ता है धूर्त मानुष अब तो करले अहिंसा।।
स्वर्ग-नरक ‘नहीं’ और
नहीं है कोई जन्नत।
मेरा भी है दोस्त तुमसे एक
ही मन्नत।।
संगठन शक्ति की तुम करते हो बर्बादी।
निष्ठा रख संविधान में, जो देता आजादी।।
पाँच हजार साल पीछे की
कल्पना।
कोई गैर नहीं, आज भी है तेरा अपना।।
अपना-पराया और न तो कोई उच्च नीच।
मानुष मेरे भाई एक सेल्फी तो साथ में खींच।।
खोद के गड्ढा तुझे जिसने है
गिराया।
उठा उन्हें भी क्योंकि वह
भी है नहीं पराया।।
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# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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