कैलाशपति तुने रंग कैसा लगाया ?
उमा जो कही थी
“क्यों?”
मुझे न दिलाया।
मेली किसी पराई कईना से
शादी न कराना
चाहे समुद्र मंथन का जहर
ही पिलाना।।
नाम तूने जिसका
मच्छरदानी में लिखाया।
विषामृत बनाकर
मुझे जो पिलाया।
एक पल भी उनसे
नजर न मिलाना।
चाहे समुद्र मंथन का जहर ही पिलाना।।
तिराहे को तूने, है
कैंसे मिलाया ?
एक ही महाशक्ति हम सबमें मिलाया।
लल्ला की आस है
‘एक ही’
लल्ला दिलाना।
चाहे समुद्र मंथन का जहर ही पिलाना।।
आँखें तरस गई देखने को
उन्हें ही दिखाना।
मन का हारना हुआ है
अब फिर से न हराना।
पसंद नहीं तो क्या हुआ ?
मुझे पसंद का बनाना।
चाहे समुद्र मंथन का जहर
ही पिलाना।।
वो कोई उमा सी
उमा इक दिलाना।
सोलह श्रृंगार ‘करना’
उन्हें भी सिखाना।
प्यास मिट जाए ‘मेरी’
ऐसी जगाना।
चाहे समुद्र मंथन का जहर ही पिलाना।।
# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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