हावय हमर सँकल्प, अब कोरोना ले लडबोन्।
एको जीव गँवावय झन, उदिम अइसे करबोन्।।
जोडी सँग वादा निभाबोन्
जिनगी ल बचाबोन्।
सरकार के बात मानके
घर के भीतरी रहिबोन्।
हावय हमर सँकल्प, अब कोरोना ले लडबोन्।
चाँऊर-दार के नई हे कमी
ए बात ल बगराबोन्।
फोकट म सरकार
देवत हावय
रांध-रांधके खाबोन्।
हावय हमर सँकल्प, अब कोरोना ले लडबोन्।
जीमी कांदा, सेमी खोइला
जम्मो सुकसी ल सिरवाबोन्।
पाछू साल के अथान ‘आमा के’
चांट –चांट चटकारबोन्।
हावय हमर सँकल्प, अब कोरोना ले लडबोन्।
मही म चाँऊर पिसान घोर
कढ़ी सुग्घर बनाबोन्।
सुखा मिरचा अउ लहसून के
चटनी म हम खाबोन्।
हावय हमर सँकल्प, अब कोरोना ले लडबोन्।
पसई नून खाके
जिनगी ल बचाबोन्।
तभेच माई-पिला मिलके
हरेली ल मनाबोन्।
हावय हमर सँकल्प, अब कोरोना ले लडबोन्।
फोकट घर ले निकलन नहीं
तिरी-पासा हम खेलबोन्।
दारू-कुकरी के पइसा बचाके
नोनी बर फराक लेबोन्।
हावय हमर सँकल्प, अब कोरोना ले लडबोन्।
घर के भीतरी उधमकूद
लइका सँग हम करबोन्।
हमरो बंस ह अम्मर राहय
उदिम अइसे करबोन्।
हावय हमर सँकल्प, अब कोरोना ले लडबोन्।
मेयार म साड़ी ल अरझाके
‘बाबू ल’
झुलना झूलाबोन्।
एक साहर के राजा कहिके
सुग्घर कहानी सुनाबोन्।
हावय हमर सँकल्प, अब कोरोना ले लडबोन्।
अँगना म गड्ढा कोदके
करा बाटी हम खेलबोन्।
बारी म रेंहचूल बांध के
एहू ल झुलाबोन्।
हावय हमर सँकल्प, अब कोरोना ले लडबोन्।
# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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