दाई गोहरावत हँव मैं तोला
तैं शक्ति दे अइसे मोला।
अंतस ले
अब्बड़ क्रूर होतेंव दाई
फेर कहितीन मोला भोला।।
अइसे शक्ति देतेव दाई
“सत्ता के”
दुरुपयोग कर पातेंव।
दुसर के हिस्सा
लूट खसोट के
जोशी मठ मैं बनवातेंव।
दाई गोहरावत हँव मैं तोला
तैं शक्ति दे अइसे मोला ।।
अंधेर नगरी के
चौपट राजा ले
जब्बर चौपट हो जातेंव।
राजा बनके
मैं हर दाई
परजा ऊपर कोड़ा बरसातेंव।
दाई गोहरावत हँव मैं तोला
तैं शक्ति दे अइसे मोला।।
उन्तीस के पहाड़ा जइसे ‘दाई’
लूट, घुस
अऊ बेईमानी वाले
मोर पूँजी ह बढ़तीस।
कतको धांधली करतेंव मैं हर
फेर दाई
ईमानदारी के नाव म
मोर ऊपर
फूल चढ़तीस।
दाई गोहरावत हँव मैं तोला
तैं शक्ति दे अइसे मोला।।
‘दाई’ मोरो मन हावय
मैं, ऊँच नीच के ज़हर बरसातेंव।
अपन स्वारथ बर
हिंसा घलो करवातेंव
तबो ले दाई
मैं इन्द्र देवता कहातेंव।
दाई गोहरावत हँव मैं तोला
तैं शक्ति दे अइसे मोला।।
दाई गोहरावत हँव मैं तोला
तैं शक्ति दे अइसे मोला।
अंतस ले अब्बड़ क्रूर होतेंव दाई
फेर कहितीन मोला भोला ।।
# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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