गँवइहा ददा ले अबड डिमाण्ड करथे।
शहरिया टूरा ह हर बात म रिसाथे।
तबे तो सँगी.. ददा घलो गुसियाके
अपन लइकई के गोठ बताथे।।
मेनीपोको पेंट पहिनथस।
‘फेर’ आनी-बानी के
गोठियाथस।
झूठ चलाकी हमर पुरखा नई
जानिस।
‘टूरा’ बढ़-चढ़ के तँय
गुठियाथस।।
सट्टा जुआ कभु खेलेन नहीं।
‘बेटा’ जबर शर्त तँय लगाथस।
बिगरे के रसदा म झइन चल बेटा।
इही बात म
मोला तँय रोवाथस।।
गोल्फ हाकी कभु खेलेंव
नहीं।
गिल्ली डंडा खेलइया तो आँव।
कुकुर बिलई कभु चराएँव नहीं।
मैं भैसी पडरू के चरइया
तो आँव।।
साँप सीढ़ी अऊ लूडो खेलेंव नहीं।
थप्पा-भटकउला के खेलइया तो आँव।
अमली बीजा के तिरी पासा
अउ कौड़ी खेलइया तो आँव।।
उद्यान अऊ ओपन जीम काबर
जाबो।
बर-पीपर तरी खेलइया तो आँव।
अगास झूला कभू झुलेंव नहीं
‘त का भईगे ?’
रेहचुल-ढेलुआ के झुलैया
तो आँव।।
स्विमिंग पूल के नइहे जरूरत।
नरवा नदिया म तँउडइया तो आँव।
बोटिंग नई करेंव
‘त का भईगे ?’
भैंसा ऊपर चढ के मजा लुटइया तो आँव।।
पागा गिराऊ बिल्डिंग देखेंव नहीं।
खदर म रहैया तो आँव।
फटफटी चलाएँव नहीं
‘त का भईगे ?’
पड़वा ऊपर चढ़ैया तो आँव।।
पनीर अऊ कोफ्ता कभू
चिखेंव नहीं।
नुन बासी के खवइया तो आँव।
अम्मटहा रमकेलिया अऊ जिमी
कानदा
आलू भाटा के चीखना खवइया
तो आँव।।
मेगी पिज्जा कभु खायेंव नहीं।
चिला रोटी के खवइया तो आँव।
सीसी रोड म रेंगेव नहीं
‘त का भईगे ?’
धरसा रसदा के रेंगैया तो आँव।।
मार्निंग वाक कभु जावन नहीं।
मुही पार म रेंगइया तो आँव।
जीम-सीम कभु नई गेन
‘त का भईगे ?’
पसीना गिराके कमइया-खवइया
तो आँव।।
मोर गोठ ल मान ले बेटा।
होसियारी अभी झइन मार।
हेलीकाप्टर घलो बिसाबो
‘एक दिन’
अभी नई लेवन पुराना कार।।
सरकारी स्कूल म पढे बर
जाबो।
अउ देश के मान बढ़ाबोन्।
गुगल-फेसबुक के नौकर नई
बनन।
ऐकर ले बडे कम्पनी बनाबोन्।।
# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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