भगवान ह सोवत हे - BHAGWAN HA SOWAT HE
मुंधियार असन लागे जिनगानी
बिन अंतस के महारानी।
बनगे अप्पट धरसा
होगे सुरुज के उगना ह
कहानी।
देख सुकुवा उए के सपना
मन मगन हो जाथे।
मोर कलूठा
करिया अंतस म
होली के रंग हे मितानी।।
घमण्डी देख
काया के सुघराई।
बाँचे
कोयली अऊ बन चिरई।
का होगे तोला रे निरमोही।
तन चांटे
जइसे
घीव ल बिलई।।
झाँक
तोर अंतस के भीतरी ल
जँक लगत हे।
करिया कठोर
छुए म
घाँव जमत हे।
काबर ?
तन के घमंड म
मरे जावत हस।
तोर अंतस के भगवान ह सोवत
हे ।।
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# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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