बरखा बहार आई - BARKHA BAHAR AAI
कवि : हुलेश्वर प्रसाद जोशी
बरखा बहार आई ‘रे मन’
बरखा बहार आई।
मन मोर मयूर
कीचड़ में
चुनरी सनाई
सावन की बून्दों ने
प्यास जो हमरी बुझाई।
बरखा बहार आई
‘रे मन’ बरखा बहार आई।।
मिट गई प्यास
‘मन् ने’
उमँग जगाई।
आँखों ने देखा
एक सपना
कि आँखें भर आई।
मैनें मन की न सूनी
एक आकाशवाणी
मुझे सुनाई।
बरखा बहार आई ‘रे मन’ बरखा बहार आई।।
बस्तर की जंग
महुए की रस रसाई।
न मिटने वाली
एक अभिलाषा
जगाई।
मैंनें जो मन को
सवारेंगी से
रंग रंगवाई।
बरखा बहार आई
‘रे मन’ बरखा बहार आई।।
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# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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