बाहों में भर लूँ - BAAHON MEN BHAR LUN
कवि : हुलेश्वर प्रसाद जोशी
बाहों में भर लूँ ‘तुम्हें’
आओ न एक बार।
अरसों खुशी से बीत जाये
आया है श्रीवार।
फूल पत्ते कुछ भी चलेगा
नहीं चाहिए ‘स्वर्ण हार’
बाहों में भर लूँ तुम्हें
आओ न एक बार।।
चाँदनी रात रे सजन
लटकर है तलवार।
आँखों में खुशियाँ
तू नाविक रे मैं पतवार।
न दे गुँजन
सखियों की आयी रे बहार।
बाहों में भर लूँ तुम्हें
आओ न एक बार।।
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# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?
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