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अमर शहीद श्री कनेर सिंह उसेण्डी का संक्षिप्त जीवन परिचय
जिस रस्ते पे तू गुजरे वो रेंटों से भर जाए।
उसमें पड़े जो पैर
तुम्हारा
नाक के बल गिर जाए।।
गंदी भद्दी कविता सुनाकर
तुमको हम हँसाएँ।
तू जो हमसे हँसे न ‘गोरी’
गिन-गिन डंडे लगाएँ।।
चुन्दी पकड़के हम री
‘गोरी’
खडरी तुँहर निकालें।
तू भी चाहे अगर री गोरी
बेलन हमपे बरसाले।।
कभी अगर मैं दारू पियूँ
या फिर
लाँछन लगाऊँ।
ऐसे मर्द मेरा क्या ही कहना
मैं पल भर में मर जाऊँ।।
अगर न मर जाऊँ मैं
तत्क्षण
डंडे खूब बरसाना
अगर न बरसा सको तो “गोरी”
जहर हमें पिलाना।।
मेरी कविता की ‘क’ हो तुम
बनकर रहो न सनम।
सच में यदि मुझसे ‘वर’ निकालोगी
तो रह न पाएँगे हम।
मेरी जान की ‘जा’ हो
“तुम” बिन न रह पायेंगे हम।
तुम रहोगी तो रहेंगे
वरना, नहीं जीने की है तुम्हारी ही कसम।।
शिकवे मिट जाएँगे
न रहेंगे हम शिकायत
सुनने।
तुम न रहोगी
तो बताओ ?
किसे जाएँगे चुनने।
आसमाँ के भी आयेंगे ‘सारे’
कदम तेरे चुनने।
जब तुम्हीं चुन जाओगी
तो बताओ क्यों ?
“जियेंगे”
कांटे बनकर चुभने।।
काश !
मैं भी होता शराबी
कुछ वक्त के लिए या
भिखारी।
शराबी शराब के नशे में
बहक जाते हैं।
वो महात्मा बनकर कभी
देश के लिए भी कुछ कर
जाते हैं।
और राष्ट्रपति अवॉर्ड
लेकर
अब्बड़ नाम कमाते हैं।।
मैं शराबी बनकर
खाली बोतल फेंक रहा था।
ठंड में रवनियाँ से खुद को सेंक रहा था।
तभी एक आतंकी आया
“और”
मुझे खूब धमकाया।
मैं डरकर भागना चाहा
छटपटटाकर धोखे से उसे एक धक्का लगाया।।
अब तक आतंकी धक्का खाए रो
रहा था।
मारे दर्द मौत की दुवारी
सो रहा था।
कुछ ही पल में
मेरा साथी एसएलआर तान रहा
था।
किन्तु देखा तो उसमें जान
की कहाँ था।।
मेरा दोस्त इस पर अर्ज किया :
लोग शराब को शराबी की कमजोरी कहते हैं।
हम कहते हैं
वो इसी धोखे में जीते हैं।
शराबी शराब के नशे का नखरा दिखाते हैं।
और इसी बहाने
कुछ हकीकत को उजागर कर पाते हैं।।
शराबी कहता है :
दम हमीं में है
हमें हमसफ़र बना के रखना।
मेरी अर्थी उठे
वहाँ भी
पार्टी जमा के रखना।
नहीं रखोगे तो श्राप है
तुम शराबी होने के काबिल
‘नहीं’ रह पाओगे।
कमबख्त तू मेरा दोस्त नहीं है ‘बे !’
मुझसे स्वर्ग में
‘नहीं’ मिल पाओगे।।
मैं शराब पीकर आता हूँ
तो
पत्नी की करतूत को
उजागर कर पाता हूँ।
वो इस बात पर
मेरी कदर नहीं करतीं
फिर मैं जम-जम के डंडे
लगाता हूँ।।
वो कहती हैं –
मैं शराब पीकर ‘पाप’ कर जाता हूँ।
नशे में धुत्त
अपने बच्चों के हक को डकार जाता हूँ।।
बीच चौराहों में खड़ा होकर
अपनी शान दिखाता हूँ।
जीतने रुपये पत्नी से लूट लाता हूँ
शराब वाली पेसाब ही बहाता
हूँ।।
कभी-कभी रास्ते या नाली
में, पड़ा
मैं कुत्ते का पेशाब भी पी जाता हूँ।
इसके बाद भी
320 रुपये वाली बोतल पीने का
घोषणा कर जाता हूँ।।
मैं इस दीवानी पर इतना मरता हूँ
कि अंतिम पैली भर
चाऊँर भी बेच जाता हूँ।
सहर्ष
पत्नी की गाली “और”
डंडे खा जाता हूँ।
एक दिन की
ब्रांडेड दादिरस के लिए
महीने भर पलायन कर जाता हूँ।
अबे बुड़बख
तभी तो
अपनी गुलाबो से
प्रेम कर पाता हूँ।।
रोबोट नोहय मोर ददा ह
मनखे तुमन समझलव जी।
कतेक परतारना सहिथे ‘तुँहर’
काहिं तो हरू करदव जी।।
कोन जनम के दोष लगाके
नरक ल भोगवावत हव।
तुमहरे रक्छा करथे तबो
तुतारी कोंच दउरावत हव।।
24 x 365 ड्यूटी जेकर
आधा बेतन देवत हव।
धूप बरसात
बिन अन पानी के
जीवरा ल कल्पावत हव।।
अँगरेजी कानून बताके
गुलाम जेला बनाये हव।
अइसने मोर ददा ये साहेब
नागर म जेला फांदे हव।।
मोर ददा के मुस्कान ह तुँहला
फूटे आँखी नइ सुहावत हे।
तेखरे सेती रोथन साहेब
आँसू ह बोहावत हे।।
रोबोट नोहय मोर ददा ह
मनखे तुमन समझलव जी।
कतेक परतारना सहिथे ‘तुँहर’
काहीं तो हरू करदव जी।।
तइहा के गोठ ह
पहाय लागिस।
दुधारू गाय के
लात ह
मिठाये लागिस।
शिक्षाकर्मी बहू ह
बेटा ल
लउठी देखावत हे।
महतारी ह दरूहा बेटा बर
काल ल पिरोये लागिस।।
नवा नेवरनीन
घरघुसरीन के
राज हे।
देख तो बटकी के जम्मों सीथा म बाल हे।
झूठ के नियाव म
सच के फंदा चढ़गे।
महतारी ह दरूहा बेटा बर काल ल पिरोये लागिस।।
बिहाये डौकी के
भूखे लइका ह
रोटी जोहे।
सास-ससुर देवी-देवता के
तिरस्कार होही।
आगी लगय
दुश्चरित्तर बेटा के
जवानी म।
एक बात आथे
सेखनिन बहुरानी म।
हाथ जोड़ नवा नेवरनीन घरघुसरीन
के।
महतारी रोवत हे अँगना
दुवारी म।।
बूड़त ले बूड़त तक
जिनगी के राहत तक
रहे बर परही।
लागथे
एकरे सँग
मया पिरीत के बानी
लगाए बर परही।
99 साल के डोकरी बर
लागथे
जुन्ना ढेखरा
होए ल परही ।
2096 तक एकर जियत ले
कलहरत कलहरत
जिए बर परही।।
कोनो बीमारी होही मोला
ईलाज कराए बर परही।
99 साल के डोकरी के
आँसू बोहाए बर
जिए ल परही।
मान सनमान बचाए खातिर
घर म रहे बर परही।
कोरोना महामारी के परकोप ले
बाँचे बर परही।।
दुःख-सुख के चक्कर ल
डरे बर नई परही।
चाहे बिहान के होवत ले
एहर
लड़त रइही।
जेन मन एखर
एहर करत रइही
फेर ?
पहिली बता !
कोरोना ले तो बाचे बर
परही।।
दाई-ददा के सनमान बर
लड़े बर परही।
लइका ड़उकी के अधिकार बर
जीए ल परही।
कहइया के का हे “सँगी”
बूडत ले बूडत तक
जिनगी के राहत तक
जीए बर परही।
कोरोना महामारी के परकोप ले
बाँचे बर परही।
कलहरत कलहरत
जिए बर परही।।
दाई गोहरावत हँव मैं तोला
तैं शक्ति दे अइसे मोला।
अंतस ले
अब्बड़ क्रूर होतेंव दाई
फेर कहितीन मोला भोला।।
अइसे शक्ति देतेव दाई
“सत्ता के”
दुरुपयोग कर पातेंव।
दुसर के हिस्सा
लूट खसोट के
जोशी मठ मैं बनवातेंव।
दाई गोहरावत हँव मैं तोला
तैं शक्ति दे अइसे मोला ।।
अंधेर नगरी के
चौपट राजा ले
जब्बर चौपट हो जातेंव।
राजा बनके
मैं हर दाई
परजा ऊपर कोड़ा बरसातेंव।
दाई गोहरावत हँव मैं तोला
तैं शक्ति दे अइसे मोला।।
उन्तीस के पहाड़ा जइसे ‘दाई’
लूट, घुस
अऊ बेईमानी वाले
मोर पूँजी ह बढ़तीस।
कतको धांधली करतेंव मैं हर
फेर दाई
ईमानदारी के नाव म
मोर ऊपर
फूल चढ़तीस।
दाई गोहरावत हँव मैं तोला
तैं शक्ति दे अइसे मोला।।
‘दाई’ मोरो मन हावय
मैं, ऊँच नीच के ज़हर बरसातेंव।
अपन स्वारथ बर
हिंसा घलो करवातेंव
तबो ले दाई
मैं इन्द्र देवता कहातेंव।
दाई गोहरावत हँव मैं तोला
तैं शक्ति दे अइसे मोला।।
दाई गोहरावत हँव मैं तोला
तैं शक्ति दे अइसे मोला।
अंतस ले अब्बड़ क्रूर होतेंव दाई
फेर कहितीन मोला भोला ।।