दाई गोहरावत हँव मैं तोला (छत्तीसगढ़ी व्यंग) - श्री एच.पी. जोशी
दाई गोहरावत हँव मैं तोला;
तैं शक्ति दे अइसे मोला।
अंतस ले अब्बड़ क्रूर होतेंव दाई;
फेर कहितीन मोला भोला।।
अइसे शक्ति देतेव दाई;
सत्ता के
दुरुपयोग कर पातेंव।
दुसर के हिस्सा
लूट खसोट के;
जोशी मठ मैं बनवातेंव।1।
दाई गोहरावत हँव मैं तोला;
तैं शक्ति दे अइसे मोला।
अँधेर नगरी के चौपट राजा ले;
जब्बर चौपट हो जातेंव।
राजा बनके मैं हर दाई;
परजा ऊपर कोड़ा बरसातेंव।2।
दाई गोहरावत हँव मैं तोला;
तैं शक्ति दे अइसे मोला।
उन्तीस के
पहाड़ा जइसे दाई;
लूट,
घुस
अऊ बेईमानी वाले
मोर पूँजी ह बढ़तीस।
कतको धांधली करतेंव मैं हर;
फेर दाई
ईमानदारी के नाव म
मोर ऊपर फुल चढ़तीस।3।
दाई गोहरावत हँव मैं तोला;
तैं शक्ति दे अइसे मोला।
दाई
मोरो मन हावय;
मैं
ऊँच नीच के ज़हर
बरसातेंव।
अपन स्वारथ बर
हिंसा घलो करवातेंव;
तबो ले दाई
मैं इंद्र कहातेंव।4।
दाई गोहरावत हँव मैं तोला;
तैं शक्ति दे अइसे मोला।
दाई गोहरावत हँव मैं तोला;
तैं शक्ति दे अइसे मोला।
अंतस ले अब्बड़ क्रूर होतेंव दाई;
फेर कहितीन मोला भोला।।
# व्यंग के माध्यम से वर्तमान परिदृश्य पर कुठाराघात करने का प्रयास किया गया है। लेखक का उद्देश्य किसी वर्ग विशेष को आहत पहुँचाना अथवा किसी की छवि ख़राब करना नहीं है।
बहुत अच्छा है जोशी भैया। वर्तमान में अभी ऐसा ही चल रहा है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व्यंग कविता
जवाब देंहटाएंBahut khub sir 👌👌👌👌🙏🙏🙏
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