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गुरुवार, अप्रैल 01, 2021

वास्तव में भारत के रत्न कौन? इसे जानने के लिए इस उपन्यासिका को जरूर पढ़ें.... वास्तविक राष्ट्रवाद को रेखांकित करती है किताब ‘‘भारत के रत्न’’

वास्तव में भारत के रत्न कौन? इसे जानने के लिए इस उपन्यासिका को जरूर पढ़ें.... वास्तविक राष्ट्रवाद को रेखांकित करती है 
किताब ‘‘भारत के रत्न’’

श्री नीरज चन्द्राकर द्वारा लिखित उपन्यासिका ‘‘भारत के रत्न’’ का अनेकोबार प्रसंसा सुना था, ये पुस्तक देश के शीर्ष प्रकाशक ‘‘भारतीय ज्ञानपीठ’’ द्वारा प्रकाषित है। मैं दिनांक 20 मार्च 2021 को विशेष अवकाश पर रवाना होने के पूर्व अवकाश स्वीकृति के लिए अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, नारायणपुर के कार्यालय में गया हुआ था, चर्चा के दौरान मैंने उनके उपन्यास ‘‘भारत के रत्न’’ का जिक्र किया तब उन्होने पुस्तक की एक प्रति भेंट किया था। लम्बे दिनों से साहित्य पढ़ने की आदत छूट सी गई है मगर मित्रों और वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा अनेकोंबार इतना प्रसंसा सुन चूका था कि मैने सोचा उपन्यासिका ‘‘भारत के रत्न’’ को एक-दो घण्टे के मान से 3-4 दिन में पढ़ लूंगा, आज सुबह मार्निंगवाॅक के बाद लगभग 8 बजे घर पहुंचा तो देखा बाथरूम में बच्चों का कब्जा है सोचा क्यों न 20-25 मिनट तक खाली समय का उपयोग करके पुस्तक को पढ़ लूं? मैंने पढ़ना शूरू किया, ‘‘भारत के रत्न..... दिसंबर की कड़कती ठंड भरी रात के पश्चात् अलसाया हुआ भोर....’’ तो पाया कि इस उपन्यासिका में मूलतः चार हीरोज की कहानी हैं जो काका के टूटी-फूटी झोपडीनुमा चाय दूकान से अपने दिन की शुरूआत करते हैं, खेलना, मस्ती करना और अलग-अलग लक्ष्य के साथ स्ट्रगल करना ही इनका मूल धर्म है.... हम सबके युवावस्था की आम जीवन, मित्रों और परिवार के ब्यंग और घनश्याम काका के चाय पर चर्चा परिचर्चा और हास उपहास के साथ लम्बी चर्चा ने कब टाईम मशीन लाकर मुझे पुस्तक के भीतर प्रवेश देकर इसका पात्र बना दिया मुझे पता ही नहीं चला। मैं कभी संजय तो कभी हरिश, कभी जितेन्द्र तो कभी राघवेन्द्र के रूप में अपना युवापन फिर से जी गया। संजय अपने दोस्तों में सबसे अधिक आर्थिक विपन्नता भरे जीवन जी रहा है इसके बावजूद दोस्तों के द्वारा उनके आर्थिक स्थिति के प्रतिकूल उनके जन्मदिन पर घनश्याम काका को राजशाही आर्डर दिया जाना बेचारे संजय को अंतर्द्वंद में फंसा देता है मगर चोरी से दोस्त ही उसके सारे बिल चुकता कर देते हैं। देश-प्रेम की भावना से ओत-प्रोत संजय सबसे पहले भारतीय सेना में जवान बन कर अपने सपने साकार कर लेता है इसके साथ ही आर्थिक आजादी को हासिल भी कर लेता है इसके साथ ही सभी दोस्त अपने सपने के शीर्ष में पहुंच चूके हैं। संजय की शादी का तय होना और इसमें दोस्तों और बहन अलका द्वारा संजय को ढ़केलने का प्रयास करना। संजय के विवाह के दौरान संजय की अनदेखी और उनके दोस्तों फिल्म स्टार जितेन्द्र और क्रिकेटर हरीश को व्हीआईपी ट्रीटमेंट देना एक पल के लिए संजय को भी मानवीय व्यवहार के मानसिकता में भीतर ही भीतर आहत करने लगती है तभी उनके दोस्त उन्हें एक दिन के राजा होने के गौरव का अहसास कराने के लिए बारात से वापस आ जाते हैं तब जाकर संजय को उचित सम्मान मिल पाता है। संजय और योगिता के विवाह के माध्यम से समाज में लड़की का पिता होना किस तरह से अभिषाप माना जाता है इसे रेखांकित करने और भारत की व्हीआईपी कल्चर पर प्रहार करने का कुशलतापूर्ण प्रयास किया गया है। कुछ ही दिन बाद राघवेन्द्र भी केन्द्रीय मंत्री बन जाता है इसके साथ ही दोस्तों के हैसियत के आगे संजय कई बार खूद को बौना पाता है तो उसे उनके दोस्त गौरवान्वित भी करते हैं। संजय की पोस्टिंग पुलवामा बार्डर में हो जाता है, उसके बटालियन के पोस्ट में आतंकी हमला हो जाता है और वह पुरे बहादूरी के साथ आतंकवादियों का सफाया करते हुए अंततः अपने साथी जवान को गोला बारूद उपलब्ध कराने के दौरान शहादत को प्राप्त हो जाता है। तिरंगा में लिपटे शहीद संजय के पार्थिव शरीर के सम्मान के लिए लाखों की संख्या में आज भीड उमडी हुई है उसे पुष्पचक्र और पुष्पार्पित करने के लिए आज उनके तीनो दोस्त केन्द्रीय मंत्री, फिल्म स्टार और क्रिकेटर सहित प्रदेश के मंत्रीगण, सैकड़ों जनप्रतिनिधि और आईएएस, आपीएस अधिकारी उपस्थित हैं मगर आज भीड़ की प्राथमिकता केवल और केवल शहीद संजय का पार्थिव शरीर है; ये पहला अवसर है जब पहलीबार लाखों के भीड में कोई व्हीव्हीआईपी या व्हीआईपी नहीं है बल्कि सबके सब बराबर और समान हैं आम दर्शक। इसी बीच शहादत और श्रद्धांजलि के ठीक दूसरे-तीसरे दिन योगिता का तबियत खराब हो गया है उसे अस्पताल ले जाया गया है वहां पता चलता है कि योगिता गर्भवती है, अलका से सूचना पाकर संजय के तीनों व्हीआईपी दोस्त योगिता को बधाई देने आए हुए हैं तीनो अपने योगिता भाभी से बारी-बारी से पुछते हैं कि आपके भावी संतान मेरी तरह क्रिकेटर, केन्द्रीय मंत्री या फिल्म स्टार बनेंगे न भाभी, मगर योगिता खुली और दमदार आवाज में बोल पड़ती है - संजय जैसे ही भारत मां का अनमोल रत्न ‘‘भारत रत्न’’ और फिर फूट-फूटकर रोने लगती है।

ये उपन्यासिका जहां मित्रता की मिशाल प्रस्तुत करती है वहीं खिलाडियों, फिल्म स्टार और राजनेताओं को कैसे ईश्वर मान लिया जाता है और देशसेवा करने वाले जवानों को कितना तुच्छ समझा जाता है ऐसी मानसिकता पर भी प्रहार किया गया है। इसके माध्यम से कैसे देश के लिए अपने प्राणों का न्यौछावर कर देने के लिए तत्पर रहने वाले जवानों के परिवार को सीमित संसाधन में जीने को मजबूर रहना पडता है इसे भी रेखांकित करने का प्रयास किया गया है। साथियों ये उपन्यास मेरे जीवन का पहला ऐसा उपन्याय है जो मेरे आखों से अश्रुधारा बहने पर विवष कर दिया है हालांकि मै इस ग्रंथ का पात्र बनकर लगभग पूरे चार घण्टे तक पूरी तरह से सैनिक का जीवन जीया, शौर्य और पराक्रम किया। अंततः संजय के शहादत के साथ ही मेरी आखें राहेन नदी बनकर बहने लगी जो लगभग पूरे 20 मिनट तक नम ही रही है। मैं इसके माध्यम से अनुरोध करता हूं कि आप भी इस उपन्यासिका को एक बार जरूर पढ़ें...... बहुत अच्छा लगेगा, सायद आपने भी इतनी अच्छी किताब कभी और नहीं पढ़ा होगा। मेरा मानना है कि इस किताब को न सिर्फ फौजी, सशस्त्र बल के जवान औ पुलिस जवान अनिवार्य रूप से पढ़ें वरन् हर युवा और छात्र को इसका अध्ययन जरूर करना चाहिए। मेरी अपनी सिफारिश है कि इसे यूनिवसिटी के सिलेबस में शामिल कर देना चाहिए... क्योंकि वास्तव में देश के सीमा की सुरक्षा और सीमा के भीतर की सुरक्षा से ही हर नागरिक के जीवन को स्थायित्व मिलता है। आप जिसे भगवान मानने का भ्रम पाल रखे हैं आप जिन क्रिकेटर्स और फिल्म स्टार को भगवान मानते है उनके नहीं होने पर भी आपके देश और आपका जीवन सुरक्षित हो सकता है मगर देश में फौजी, सशस्त्र बल और पुलिस के जवान और किसान नही होंगे तो आप न तो सुरक्षित होंगे न आपका जीवन रहेगा इसलिए ही स्वतंत्र भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री माननीय लालबहादूर शास्त्री जी ने ‘‘जय जवान और जय किसान’’ का नारा देते हुए इसे ही जय हिन्द का आधारशिला बताया है। 

साथियों, जिस किताब को 03-04 दिन में पढ़ने का लक्ष्य बनाया था, उसे बिना ब्रेक के अभी लगभग साढ़े 4घंटे में पूरी तरह पढ़ लेने के बाद रिव्यू लिखकर आपको शेयर कर रहा हूँ। पुनः आपसे अनुरोध है इस पुस्तक को जरूर पढियेगा... मैं दावा करता हूँ ये किताब आपको बहुत अच्छा लगने वाला है।


एच.पी. जोशी
नवा रायपुर, छत्तीसगढ़

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