देश का पैगाम किसानों के नाम...... "जागो, संगठित हो और हमारे जीवन को संरक्षित करो", क्योंकि फैक्टरियां और व्यापारिक प्रतिष्ठान हमें लाखों बीमारियों की सौगात देने को उतारू हैं।
किसान 6 से 8 महीने तक कड़ी मेहनत करके, 150 रुपये किलो में बीज लेकर राहर बोता है। खराब मौसम से बचकर कुछ उत्पादन कर भी लेता है तो उस राहर को 40-60/KG में बेचने को मजबूर रहता है जबकि व्यापारी वर्ग उसे एक दिन के मशीनी मेहनत के बाद 125/KG में बेचता है। किसानों थोड़ा समीक्षक बनो, पिछले साल राहर दाल का जो अधिकतम मूल्य था उसके 75% से कम मूल्य में राहर मत बेचो..... जागो और संगठित हो जाओ, आप मंडी या दुकान में जितना अधिक भीड़ लगाकर बेचोगे, आपके राहर उतने ही सस्ते दामों में बिकेंगे..... आराम से बेचना, बचाकर रखो.... दुकान या मंडी में बेचने के बजाय मील से या जतवा से दाल बनाकर, दाल को केमिकल से केंसर और शुगर कारक बनाये बिना स्वयं सड़क किनारे दुकान लगाकर ग्राहकों को बेचना, ताकि आम आदमी रोगमुक्त जीवन को प्राप्त करें और आपको अच्छे दाम मिले। आम जनता को लुटेरे दलालों से बचाएं।
मैंने ऊपर जो राहर के बारे में कही वह केवल राहर के लिए नहीं बल्कि लगभग सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों के लिए बता रही हूँ। आप चावल, गेंहू और अन्य सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों के रखरखाव की समीक्षा करेंगे तो समझ मे आएगा कि आप जिसे पौष्टिकता और जीवन की रक्षा के लिए खा रहे हैं वह आपको ढेरों बीमारियों की सौगात देने वाली है। हम किसान अपने घरों में धान, गेंहू, राहर, चना इत्यादि को लंबे दिनों तक रखने के लिए खासकर बीज के रूप में रखते है तो उसमें नीम पत्ते, प्याज इत्यादि डालकर उसे घुन इत्यादि से बचाते हैं, अब कैमिकल प्रोसेस के माध्यम से उसी खाद्य पदार्थों में जहरीले केमिकल मिलाया जा रहा है, ताकि अनाज के एक दाने भी खराब या बर्बाद न हो चाहे आप खाने वाले उसे खाकर जल्दी मरने योग्य होते जाएं।
हम ग्रामीणों और किसानों को बड़ी समस्या होती है अपने खाद्य पदार्थों की सुरक्षा में। आप जिस चावल, राहर और अन्य खाद्य पदार्थ को बाजार या दुकान से खरीदते हैं उसमें कैमिकल डालकर सुंदर बनाया गया है, चिकना बनाया गया है ताकि आप देखकर आकर्षित हो सकें। यदि आपने धान या दाल की मिलिंग नहीं देखी होगी तो जरूर देखिए जिस अनाज को आप दोगुने दाम देकर खरीद रहे हैं वह जहरीले पदार्थों की लेप से लिपटी हुई है जो आपको भयावह बीमारियों से ग्रसित करने वाली है।
बचपन में हमारा परिवार लगभग 3 हेक्टेयर जमीन में गन्ना किसानी करके उसका गुड़ बनाने का काम करता था, गुड़ को थोड़ा साफ और चमकदार बनाने के लिए पुटू, एक प्रकार का भिंडी के तने के छिलके डालकर गन्ना रस से उसका कालापन निकालते थे, मगर अब ऐसा नहीं है टोटल कैमिकल प्रोसेस होने लगा है। मेरे दिमाक में एक निर्देश हमेशा से, बचपन से सुरक्षित है... शक्कर बीमारियों का कारक है जबकि अब जिस पद्धति से सुंदर दिखने वाले गुड़ बनाकर आपको खिलाया जा रहा है वह भी आपके साथ धोखा है, इसके माध्यम से आपको सैकड़ों बीमारियों की सौगात दी जा रही है। इसका बड़ा कारण है ईंधन बचाने और कम गन्ने में अधिक गुड़ बनाने की होड़। अब जो ग्रामीण क्षेत्रों में गुड़ की फैक्टरी लग रही है वह भी केमिकल और बीमारियों से युक्त है, भोज्य पदार्थों में जितना अधिक व्यापारिक इन्वॉल्वमेंट होगा ग्राहकों को उतने अधिक दाम में उपलब्ध होते हैं, भोज्य पदार्थ और राशन जितना अधिक दिनों तक व्यापारिक प्रतिष्ठान में रहेंगे उतने अधिक रोगकारक और केमिकल युक्त होंगे। इसलिए हे भगवान, हे किसान आपसे प्रार्थना है अनाज का थोक विक्रय मत करो क्योंकि ये लोग हमें बीमारियों से मारने और लूटने को उतारू हैं आपके मेहनत में केवल दलाली करने वाले हैं। आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना है, थोक के बजाय फुटकर बेचो, अपने घर मे फिर से कोठी बनाओ, खेत से सीधे बोरी भरकर मत बेच दो... हमारी रक्षा करो...हमारी प्राण बचाओ।
पुनः आपसे निवेदन है कि परंपरागत कृषि पद्धति को छोड़कर थोड़ा व्यापारिक बनिए.. स्थानीय मार्केट में मांग के अनुरूप ही अनाज का उत्पादन करिए; हमारे जीवन और पेट भरने के साथ साथ थोड़ा अपने आर्थिक स्थिति में सुधार भी करिए। थोड़ा संगठित हो जाओगे, जागरूक हो जाओगे तो आत्महत्या के लिए मजबूर नही होओगे, ख्याल रखना मनुष्य के जीवन ले लिए हवा और पानी के बाद जो सबसे आवश्यक है वह है आप किसानों के द्वारा उत्पादित अनाज। जो लोग आपके अपमान करने, आपको देशद्रोही बताने में लगे हैं उन्हें बताना भी जरूरी है कि जिसे वह खाकर जिंदा है वह फैक्टरी में नहीं बनते। फैक्ट्री में बनने वाले कोई भी अतिआवश्यक चीजें राशन से अधिक आवश्यक नहीं है। उपभोक्ताओं को भी बताना जरूरी है उन्हें भी ज्ञात होनी चाहिए कि किसानों और उनके बीच के जो लोग हैं दलाली कर रहे हैं, केवल दलाली ही नहीं बल्कि बीमारियों की सौगात दे रहे हैं। आम लोगों को भी जानकारी होनी चाहिए कि उनके जीवन के लिए जाति, धर्म और सीमा की नहीं बल्कि शुद्ध हवा, पानी और केमिकल रहित अनाज की जरूरत है, जाति नहीं होगी, धर्म नही होगी और सीमा नही रहेगी तब भी वे जिंदा रह सकते हैं।
(श्रीमती विधि हुलेश्वर जोशी)
नवा रायपुर, छत्तीसगढ़
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें