लिख दूँ क्या ? "काव्य संग्रह"
अँगूठाछाप लेखक "किताब"
मंगलवार, दिसंबर 28, 2021
बस्तर फाइटर के 1000 अभ्यर्थियों को एसपी श्री गिरिजा शंकर जायसवाल और कलेक्टर श्री धर्मेश साहू ने बांटी किताबें, एसपी ने भविष्य में निरंतर आगे बढ़ने के लिए दी अपनी शुभकामनाएं
शनिवार, दिसंबर 25, 2021
नारायणपुर पुलिस के सहयोग से शुरू हुई साप्ताहिक बाजार, 05 जिलों के संगम कडियामेटा (कडेमेटा) में अब हर शनिवार लगेंगे बाजार
नारायणपुर पुलिस की उपलब्धि: नक्सलियों के मंसुबे पर फेरा पानी, अलग-अलग 02 स्थानों पर आईईडी बरामद कर किया डिफ्यूज
गुरुवार, दिसंबर 23, 2021
आज़ादी पूर्व से आज तक अबुझमाड़ के जो लोग पैदल चलने को मजबूर थे अब सड़क बनने से मोटर सायकल और कार की करेंगे सवारी
बुधवार, दिसंबर 22, 2021
नारायणपुर पुलिस की पहल: जिला के सभी सिनियर विद्यालयों और महाविद्यालयों में ‘‘यातायात जागरूकता कार्यक्रम’’ का होगा आयोजन, आज शासकीय उच्चतर माध्यमिक स्कूल, बेलगांव (नारायणपुर) में ‘‘यातायात जागरूकता कार्यक्रम’’ का हुआ आयोजन
मंगलवार, दिसंबर 21, 2021
एसपी श्री गिरिजा शंकर जायसवाल (आईपीएस) ने सड़क निर्माण कार्य का किया आकस्मिक निरीक्षण
सोमवार, दिसंबर 20, 2021
आईजी बस्तर श्री सुन्दरराज पी. जिले के नव पदोन्नत सहायक उप निरीक्षकों और प्रधान आरक्षकों के उत्साहवर्धन के लिये नारायणपुर के प्रवास पर, आईजी ने कल्याणकारी पुलिसिंग की नीव रखते हुए जवानों को ‘‘ए.एस.के. कांसेप्ट’’ पर आधारित कार्य करने की सीख दी
"अखिल भारतीय ऑनलाइन धार्मिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता - 2022" के बारे मे संक्षिप्त जानकारी और सर्टिफिकेट का सत्यापन
नारायणपुर : जिला पुलिस बल के नव पदोन्नत सहायक उप निरीक्षक और प्रधान आरक्षक ने आयोजित किया मिलन समारोह; जवानो ने पहली बार पुरे पुलिस परिवार के साथ मिलकर भव्य तरीके से अपने पदोन्नति के पल को एन्जॉय किया
स्वर्गीय श्री अरूण चन्द्राकर की स्मृति में आयोजित राज्य स्तरीय बैडमिंटन प्रतियोगिता का हुआ समापन, ओपन कैटेगरी डबल्स में उगास विश्वास - सत्या मंडावी (दुर्ग, छग) और वेटनर्स कैटेगरी डबल्स में गणेश साहू - अशोक साहू (मलकानगिरी, ओडिशा) ने मारी बाजी
शनिवार, दिसंबर 18, 2021
गुरू घासीदास जयंती विशेषांक: गुरु घासीदास बाबा जी के 07 सिद्धांत, प्रचलित 42 अमृतवाणी (उपदेश) और 27 मुक्ता (हिन्दी और छत्तीसगढ़ी में) संक्षिप्त व्याख्या सहित
गुरू घासीदास जयंती विशेषांक: गुरु घासीदास बाबा जी के 07 सिद्धांत, प्रचलित 42 अमृतवाणी (उपदेश) और 27 मुक्ता (हिन्दी और छत्तीसगढ़ी में) संक्षिप्त व्याख्या सहित
श्रीमती कली बाई जोशी की किताब गियान के अमरित (Gyan ke Amrit) से साभार
गुरु घासीदास के सिद्धांत
1
सतनाम ऊपर अडिग विश्वास रखव।
सतनाम पर अडिग विश्वास रखो।
2
मूर्ति पूजा झन करव।
मूर्ति
पूजा मत करो।
3
जाति-पाती के प्रपंच म झन परव।
जाति-पाती
के प्रपंच में मत पडो।
4
जीव हत्या मत करव।
जीव
हत्या मत करो।
5
नशा का सेवन झन करव।
नशीले
पदार्थों का सेवन मत करो।
6
दुसर स्त्री ल घलो माता-बहन मानव।
गैर
स्त्री को भी माता-बहन मानो।
7
चोरी अऊ जुआ ले दूर रहव।
चोरी
मत करो और जुआ-सट्टेबाजी से दुर रहें।
गुरु घासीदास बाबा के अमृतवाणी
सत ह मनखे के गहना आय।
गुरु घासीदास ने कहा है कि “सत्य
ही मानव का आभूषण है।“
2
जन्म ले मनखे-मनखे सब एक बरोबर होथे, फेर
करम के अधार म मनखे-मनखे गुड अऊ गोबर होथे।
“मनखे-मनखे एक बरोबर।“
गुरु
घासीदास ने कहा है कि सभी मनुष्य एक समान होते हैं।
जन्म के आधार पर सभी
मनुष्य एक समान होते हैं; सभी मनुष्य एक समान शक्ति के साथ और एक ही प्राकृतिक
सिद्धांत के आधार पर जन्म लेते हैं। कर्म के आधार पर मनुष्य की विशेषताएं भिन्न हो
सकती है।
·
कोई मनुष्य किसी विशेष कुल, धर्म या
जाति में जन्म ले लेने से महान या नीच नहीं हो सकता, ऐसी विचारधारा या मान्यता
रखना अमानवीय और अवैधानिक मानसिकता मात्र है।
3
सतनाम ल जानव, समझव
अऊ परखव तब मानव एखर पहिली सतनाम ल घलो झन मानहौ।
गुरु घासीदास ने कहा
है कि सतनाम क्या है इसे पहले जान लें, समझ लें और इसकी कसौटियों को परख लें, तभी
मानें। अन्यथा सतनाम को भी मत मानो, क्योंकि सतनाम को जाने बेगैर आपके सतनामी बनने
या सटनामी होने का कोई औचित्य नहीं होगा।
4
·
सतनाम ह घट घट में समाय हे अऊ सतनाम ले ही
सृष्टि के रचना होए हावय। कखरों बाप ह सृष्टि के निरमान नई करे हावे।
गुरु घासीदास ने कहा
है कि सतनाम अर्थात पाँच तत्वों की योग से ही ब्रम्हांड की रचना हुई है और यही
ज्ञात पाँच तत्व सत्य है जिससे आकाशगंगा संचालित होती है। आकाशगंगा को किसी के बाप
ने नहीं बनाया है, यह स्वतः निर्मित है।
5
जान के मरइ ह तो मारब आएच आय, फेर कोनो ल
सपना म मरई ह घलो मारब आय।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि किसी मनुष्य, पशु पक्षी या किसी भी जीव जन्तु को जानबूझकर मारना तो
हत्या है ही वरन किसी जीव को सपने में अथवा सांकेतिक रूप से मारना भी हत्या है।
·
होलिका दहन और रावण का पुतला दहन भी
हत्या की मानसिकता से प्रेरित है इसीलिए मूल सतनामी धर्म संस्कृति में होलिकादहन
और रावण दहन वर्जित है।
6
·
चोरी अउ लालच झन करव।
·
चोरी करई अऊ मँगनी माँगे के आदत ह तुँहला
निकम्मा अऊ गरियार बना देहि।
·
मोर ह सब्बो संत के आय, अउ तोर हीरा ह मोर
बर कीरा आय।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि चोरी और लालच न करें क्योंकि चोरी करने की आदत और माँगकर (भीख
माँगने) की प्रवित्ती इंसान को निकम्मा और नकारा बना देती है। गुरु घसीदास बाबा ने
यह भी कहा है कि मेरी प्रापर्टी दूसरे संतों (मनुष्य) के लिए सहज उपलब्ध है, अपने
हिस्से को मैं बाँट सकता हूँ मगर दूसरे की प्रापर्टी मेरे लिए व्यर्थ और अनुपयोगी
है।
7
·
पहुना ल साहेब समान जानिहव।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि मेहमान को साहेब
मतलब सगे-संबंधी मानो, सर्वोच्च मानो।
8
तरिया बनावव, दरिया
बनावव, कुआँ बनावव; फेर मंदिर बनई मोर मन नई आवय; मोर संत मन ककरो मंदिर झन बनाहू।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि तालाब, नदिया और कुआँ बनाओ। मगर किसी का मंदिर (धार्मिक स्थल) कदापि
मत बनाना।
·
लेकिन बड़ी दुर्भाग्य की बात है कि खुद
को गुरु घासीदास बाबा का बड़ा अनुयायी बताने वाले लोग ही उनके मूल भावना के विपरीत
गुरु घासीदास बाबा का ही मंदिर और मूर्ति बनवा रहे हैं।
9
बारा महीना के खर्चा सकेल लेहु तबेच भले
भक्ति करहु; नई ते ऐखर कोनो जरूरत नई हे।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि किसी व्यक्ति अथवा कथित अदृश्य या आराध्य लोगों की भक्ति करना आवश्यक
नहीं है, भक्ति करना ही है तो पहले कम से कम वर्ष भर की आवश्यकता के लिए राशन और
धन एकत्र कर लीजिए। यदि आपके पास परिवार की जरूरत के लिए धन नहीं है तो भक्ति करना
व्यर्थ है।
10
·
झगरा के जर नइ होवय, ओखी के खोखी होथे।
·
रिस अउ भरम ल तियागथे, तेकरे बनथे।
गुरु घासीदास बाबा ने कहा है कि झगड़ा का कोई औचित्यपूर्ण आधार नहीं
होता है, अधिकतर झगड़ा निराधार कारणों से ही होता है जिसका प्रतिफल अत्यंत बुरा या
दु:खद होता है। गुरु घासीदास बाबा का यह भी कहना है कि जो इंसान गुस्सा और भ्रम को
त्याग देता है वही सुख से जीवन जी सकता है अन्यथा विभिन्न बाधाओं से भरे जीवन जीना
उनकी अपनी मजबूरी हो जाती है।
·
सतनाम ह जीवन के आधार आय।
·
सत ल कमजोर झन मानहु।
गुरु घासीदास बाबा ने
कहा है कि सतनाम अर्थात पाँच तत्वों की योग से ब्रम्हांड की रचना हुई है और यही
पाँच तत्व सत्य है जिससे आकाशगंगा संचालित होती है इसलिए सतनाम ही जीवन का मूल
आधार है। अतः सत्य को कमजोर न समझें।
12
भीख माँगना मरन समान हे, न भीख माँगव अऊ न
तो भीख दव,
जाँगर टोर के कमाए ल सिखव।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि भिक्षा माँगना मृत्यु के समान है इसलिए किसी भी स्थिति में न तो
भिक्षा माँगे और न भिक्षा दें। खुद की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपने मेहनत से
धन अर्जित करें। हालाँकि गुरु घासीदास बाबा ने दीन –दु:खियों के सहायता करने की
सलाह दी है।
मरे मनखे ल पीतर मनई मोला बईहाय कस लागथे।
पितर पूजा झन करिहौ,
जियत दाई ददा के सेवा अऊ सनमान करव।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि मृत व्यक्ति को पितर मानकर उन्हें भोजन खिलाने का प्रयास करना मुझे
पागलपन प्रतीत होता है। यदि आप मुझे अपना मार्गदर्शक समझते हैं तो पितर की पूजा मत
करना बल्कि अपने जिंदा माता-पिता और बड़े बुजुर्गों की सेवा और सम्मान करना।
14
·
जीव ल मार के झन खाहु।
·
माँस तो माँस ओखर सहिनाव ल घालो झन छुहौ।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि किसी भी जीव का हत्या करके उसे अपने भोजन में शामिल मत करना। गुरु
घासीदास बाबा ने यहाँ तक कहा है कि माँस तो माँस, माँस जैसे दिखने वाली भोज्य
पदार्थों और माँस के समानांतर नाम वाली चीजों को भी न खायें; ऐसा करने से आप धोखे
से भी माँस का सेवन करने से बचेंगे।
·
अधिक मसालेदार सब्जी न खायें बल्कि
सात्विक भोजन ही ग्रहण करें क्योंकि अधिक मसालेदार भोज्य पदार्थ आपके आचार व्यवहार
और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
15
चुगली अऊ निंदा ह घर अऊ समाज ल बिगाडथे।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि चुगली और निंदा मत करो; क्योंकि यह परिवार और समाज को बिगाड़ता है।
·
गुरु घासीदास के अनुसार समाज का
तात्पर्य सतनामी समाज या सतनामी जाति से नहीं बल्कि समूचे मानव समाज से है।
16
अवैया ल रोकव झन अऊ जवईया ल टोकन मत; काबर
के धरम अऊ निजी मानस ह बिल्कुल निजी आजादी के जिनिस आय।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि जो मनुष्य सतनामी बनना चाहता है उसे रोकना मत और जो सतनामियत को
छोड़कर हिन्दू, क्रिश्चयन, बौद्ध या मुसलमान बनने जा रहा है उसे टोकना मत; क्योंकि
धार्मिक आध्यात्मिक मान्यता इंसान की प्राकृतिक आजादी है।
17
·
अपन आप ल हीनहा अउ कमजोर झन मानहु, तहु
मन काकरो ले कमती नई अव।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि खुद को किसी से निम्न अथवा कमजोर मत समझना; क्योंकि सभी मनुष्य एक
समान शक्ति के साथ जन्म लेते हैं।
18
मोर संत मन मोला काकरो ल बड़े कइहीं त
मोला बरछी म हुदेसे कस लागही।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि कोई भी अनुयायी यदि गुरु घासीदास बाबा को किसी अन्य संत से महान
कहेंगे तो उन्हे बरछी से छेदने जैसे पीड़ा होगी।
·
दुर्भाग्य ये है कि अधिकतर अनुयायी
अपने-अपने गुरुओं / संतों को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संत और गुरु प्रमाणित करने में
लगे हैं।
·
बरछी : एक प्रकार के नुकीले
लोहे की हथियार होती है।
19
नियाव ह सबो बर बरोबर होथे।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि जिस प्रकार से प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत सबके लिए समान रूप से
कार्य करती है; ठीक उसी प्रकार से मानव निर्मित न्याय व्यवस्था में भी सभी
मनुष्यों और जीवों को न्याय पाने का समान अधिकार होनी चाहिए।
·
यदि किसी न्याय प्रणाली में कुल,
जाति, धर्म, लिंग, जन्मस्थान,अथवा जीवन के आधार पर न्याय का तरीका बदल जाता है
अर्थात छूट या सजा का प्रावधान अलग-अलग होता है। इसका तात्पर्य यह कि ऐसा न्याय
प्राकृतिक न्याय के खिलाफ और अमानवीय सिद्धांत मात्र है।
20
इही जनम ल सुधारना साँचा ये; लोक-परलोक अऊ
पुनर्जन्म के गोठ झूठ आय।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि लोक-परलोक (स्वर्ग-नरक) और पुनर्जन्म की अवधारणा बिल्कुल झूठ है। अतः
आप जिस जीवन में हैं उसी जीवन को बेहतर जीने और बेहतर करने का प्रयास करिए।
·
गुरु घासीदास बाबा के अनुसार कोई
सतलोक या अमरलोक नहीं होता है।
·
गुरु घासीदास बाबा ने पुनर्जन्म के
बातों का समर्थन नहीं किया है।
·
हालाँकि गुरु घासीदास ने नाम की अमरता
की बात जरूर कही है। मगर दुर्भाग्य कुछ गीतकार और पंथी गायकों ने खुद का अमरलोक
बना दिया है। जो कि गुरु घासीदास के मूल
विचारधारा के विपरीत है।
·
संभव है दूसरे किसी ग्रह में जहाँ
जीवन है कुछ जीव हुबबू मनुष्य की तरह दिखते हों, मगर वो आपके रचनाकार या ईश्वर
नहीं हैं।
· स्वर्ग नर्क या सतलोक –अधम लोक की परिकल्पना घोर बकवास है, ऐसा कोई स्थान, तारे या ग्रह नहीं है।
21
·
जतेक हव सब मोर संत आव, ककरो बर काँटा झन
बोहौ।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि जितने भी लोग हैं, इंसान और जीव हैं दुनिया में, वे सभी मेरे संत हैं
इसलिए किसी के रास्ते में काँटे मत बोना।
22
ये धरती ह तोर ये, येकर सिंगार कर।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि ये पृथ्वी आपकी (पृथ्वी में रहने वाले सभी जीव की) अपनी निजी है। इसलिए
आप सबको इसे शृंगारित करनी चाहिए।
·
अर्थात पर्यावरण की स्वच्छता, जल की
उपलब्धता और वायु की शुद्धता के लिए कार्य करें; कृषि कार्य करें, पर्यावरण को
प्रदूषित न करें।
·
कुछ गीतकारों के द्वारा गुरु घासीदास
बाबा के द्वारा 12 गाड़ी लकड़ी जलाने की बात कही गई है जो कि सरासर झूठा अफवाह है।
कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा उनके ऊपर जानलेवा हमला होने की बात कही बताई जाती है।
23
दीन दुःखी के सेवा सबले बड़े धरम आय।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि दीन-दुखियों और
जरुरतमन्द लोगों की सेवा और सहयोग ही वास्तविक धर्म है।
·
वर्तमान कथित प्रचलित धर्म धर्म का कुरूपित
स्वरूप है जो इंसान को इंसान से लड़ाता है, हिंसा कराता है।
·
धार्मिक होने का मतलब कर्मकांड करना,
अपने आराध्य की भक्ति मे लीन रहना मात्र कदापि नहीं है।
·
कुछ इंसान इस भ्रम में जीते हैं कि
केवल उनका धर्म गौरवशाली और सर्वश्रेष्ठ है, जबकि यह मूर्खता से बढ़कर कुछ विशेष
नहीं है।
24
पान, परसाद, नरियर, सुपारी ल चढ़ाना ढोंग आय।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि किसी मूर्ति अथवा काल्पनिक पात्र के नाम पर खाद्य पदार्थों, पेय
पदार्थों और स्वर्ण आभूषण या धन को बर्बाद करना पाखंड है।
·
लेकिन दुर्भाग्य हम भी गुरु घासीदास
बाबा के नाम पर उनके आसन, जैतखाम और मूर्ति में खाद्य पदार्थों को चढ़ा रहे हैं।
·
गुरु घासीदास बाबा ने जैतखाम को सतनामियों
की इंडेंटिटी के रूप में गड़ाया था, परंतु दुर्भाग्य की बात ये है कि हम जैतखाम
को गुरु घसीदास की मूर्ति समझ बैठे हैं और इसकी पूजा करने लगे हैं जबकि गुरु
घासीदास बाबा ने पूजा का विरोध किया है।
25
मंदिर, मस्जिद
अऊ गुरुद्वारा झन जाहव, अपन घट के ही देव ल मनावव।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि मंदिर, मस्जिद और
गुरुद्वारा सहित किसी भी धार्मिक स्थल में न जायें, वरन अपने घट के देवता को मनाओ।
·
यहाँ पर घट का तात्पर्य घर और शरीर से है, जिससे
हम बने हैं और जिससे हमारा जीवन संचालित होती है। अर्थात शरीर को स्वस्थ और निरोगी
रखें तथा शरीर के लिए, हमारे जीवन के लिए आवश्यक प्राकृतिक संपदा को ही देवता
मानें।
26
खेती बर पानी अऊ संत के बानी ल जतन के
राखिहव।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि कृषि कार्य के
लिए पानी और संतों के ज्ञान को सहेज कर रखें।
क्योंकि
·
पानी के बिना अभी तक कृषि संभव नहीं
है, और कृषि के बिना भोजन तथा भोजन-पानी के बिना हमारा जीवन संभव नहीं है।
· संतों की ज्ञान और अनुभव से हमें अमूल्य मार्गदर्शन मिलती है जो हमारे जीवन के लिए आवश्यक है।
27
·
मया के बँधना ह असली बँधना आय।
·
मन के आवभगत ह असली आवभगत आय।
गुरु घासीदास बाबा
ने सुखमय और सफल वैवाहिक जीवन के लिए प्रेम का बंधन ही वास्तविक बंधन है। गुरु
घासीदास बाबा के अनुसार अंतरात्मा से की गई सत्कार ही असली सत्कार है।
28
बइला-भईसा ल सूरज चढ़े के बाद नागर म झन
फाँदहू अऊ गाय-भैंस ल कभु नागर म झन जोतहु।
गुरु घासीदास बाबा
ने पशु क्रूरता को रोकने के लिए किसानों को सुझाव दिया कि बैल –भैस को दोपहर के
बाद हल न फँदें, पशुओं को भी इंसानों की तरह आराम करने का अधिकार है। उन्होंने दूध
देने वाली मादा पशुओं जैसे गाय और भैस को हल जोतने के कार्य में नहीं लेने का
सुझाव दिया है।
पानी पीहु छान के अउ गुरू बनाहू जान के।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि पानी को सदैव छान कर पीयें; साथ ही यदि आप किसी मनुष्य को गुरु बना
रहे हैं तो उनके गुण अवगुण और ज्ञान मार्ग की सम्पूर्ण जानकारी लेकर ही गुरु
बनायें।
·
क्योंकि अधिकतर लोग षड्यन्त्रपूर्वक चाटुकारों
के माध्यम से झूठे प्रशंसा और अफवाह के दम पर खुद को गुरु बताने मे सफल हो जाते
हैं। कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें वास्तविक मानव धर्म का ज्ञान ही नहीं है वो अधर्म,
हिंसा और अन्याय को ही धर्म का नाम दे बैठे हैं। आपकी मार्गदर्शन करने के बजाय
आपको लड़ाने और आपको अमानुष बनाने के लिए तैयार बैठे हैं।
30
जइसे खाहु अन्न वैसे बनही मन, जइसे
पीहू पानी वइसे बोलहु बानी।
गुरु घासीदास बाबा
ने माँसाहार और शराब सेवन से बचने का सलाह देते हुए कहा है कि आप जैसे भोजन ग्रहण
करेंगे वैसे ही उस भोजन के अनुरूप आपका तन और मन रहेगा, तथा आप जैसे पानी पियेंगे
उसके अनुरूप आपकी बोली होगी।
·
यदि आप हिंसा करके जीवों के शरीर को
भोजन के रूप में ग्रहण करेंगे तो आप सदैव हिंसा और हत्या के लिए उतावले रहेंगे,
उसी प्रकार यदि आप यदि शराब सेवन करेंगे तो आप अपनी दूषित मनोदशा के अनुरूप ही
लोगों से बातें करेंगे।
31
·
सतनाम ल अपन आचरण में उतारव; अंधविश्वास, रूढ़िवाद
अऊ परंपरावाद ल झन मानव।
·
मोर कहना ल घलो झन मानव, अपन दिमाक लगावव।
गुरु घासीदास ने कहा
है कि सतनाम अर्थात सत्य को अपने आचरण में सम्मिलित करें तथा अंधविश्वास, रूढ़िवादी
परंपराओं को मत मानो।
32
मेहनत के रोटी ह सुख के आधार आय।
गुरु
घासीदास बाबा ने कहा है कि मेहनत से अर्जित धन और भोज्य पदार्थ सुख का आधार है।
·
भिक्षा, खैरात, चोरी और डकैती से धन
और भोजन अर्जित करना अनुचित कृत्य है।
·
ज्ञान पंथ कृपान कै धारा।
·
गियान दुधारी तलवार ले जादा धारदार होथे,
फेर येला धारण करईया ल कोनो घाटा घलो नई होवय।
·
जेन मनखे ज्ञानी होथे ओला अपन रक्षा बर
हथियार रखे ल नई परय।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि ज्ञानी मनुष्य के लिए उनका ज्ञान कृपाण के समान है। ज्ञानी मनुष्य को
अपने दुश्मन से लड़ने के लिए हथियार की जरूरत नहीं पड़ती है। उन्होंने यह भी कहा है
कि यदि आप कृपाण या तलवार रखेंगे तो हो सकता है उस कृपाण या तलवार से आपको अथवा आपके
परिवार को हानि हो सकती है, मगर ज्ञान से आपको कोई हानि नहीं होगी।
4
दाई ह दाई आय, मुरही
गाय के दुध झन पीहौ।
गुरु घासीदास बाबा ने कहा है कि माँ तो माँ होती है चाहे वह आपकी हो या किसी दूसरे की, अतः माँ की सेवा और सम्मान करें। जिस गाय या भैंस का बछड़ा-बछिया, अथवा पड़वा-पड़िया मर गया हो, उसका दूध मत पीना।
35
पशुबलि अंधविश्वास ये एला कभू झन करहु।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि पशु की बलि देना अंधविश्वास है।
·
मारना तो हत्या ही है चाहे आप उस
हत्या को बलि का नाम दें, वध कहें या आत्मरक्षा कहें।
·
हत्या हत्या ही है चाहे धर्म के नाम
पर हो या व्यक्तिगत स्वार्थ या अन्य कारण से किया गया हो।
·
पशुबलि मत दो, इससे कोई ईश्वर या
भगवान खुश होकर आपके मनोकामना को पूरा नहीं करता।
· धर्म के नाम पर हत्या उचित कैसे हो सकता है? धार्मिक लोगों की मान्यता रहती है कि ईश्वर सबके जन्म के कारण हैं, अर्थात समस्त जीवों के माता-पिता हैं तो फिर बताओ क्या कोई माँ-बाप अपने संतान को खाना या मारना चाहेगा?
36
धन ल उड़ाहव झन, बने
काम म लगाहव।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि धन का अपव्यय न करें, अच्छे कार्यों में लगायें।
·
अर्थात नशे का सेवन, शराब सेवन,
सट्टा, जुआ और कोई शर्त में न लगाएं बल्कि कृषि भूमि क्रय करें, आभूषण खरीदें, घर
बनायें, शिक्षा-स्वास्थ्य और पारिवारिक-सामाजिक जरूरत के काम में लगायें ।
37
एक धुबा मारेच तुहु तोर बराबर आय।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि आपने जिस भ्रूण अथवा नवजात शिशु की हत्या की है वह भी आपके समान है।
·
भ्रूण भी एक मानव है और उसे भी आपकी
तरह गरिमामय जीवन जीने का भरपूर अधिकार है।
· गुरु घासीदास बाबा के समकाल में भ्रूण और कन्या शिशुओं की हत्या होती थी जिसे रोकने के लिए उन्होंने ये बात कही थी।
38
कोनो मनखे कुल, जात अऊ धरम ले महान अऊ
पुजनीय नई होवय।
गुरु घासीदास बाबा
ने समाज मे व्याप्त ऊँच –नीच के मानसिकता का खंडन करते हुए कहा है कि कोई भी इंसान
या जीव किसी खास कुल, जाति अथवा धर्म में जन्म लेने मात्र से महान या पूज़्यनीय
नहीं होता है।
·
कोई व्यक्ति आपके गुरु के कुल में
जन्म लिया है इसका तात्पर्य यह नहीं कि वह आपके बच्चों का गुरु होगा। यहाँ यह भी उल्लेखनीय
है कि गुरु घासीदास बाबा ने कहा है कि “पानी पीहु छान के अउ गुरू बनाहू जान के।“
· महानता कर्म आधारित हो सकती है परंतु वंश आधारित कदापि नहीं हो सकता। क्योंकि आपकी पैतृक धन, संपदा भौतिक होने केकारण आपको हस्तांतरण हो जाती है मगर ज्ञान और अनुभव हस्तांतरण योग्य वस्तु नहीं है।
39
बासी भोजन अऊ दुरगुन ले दुरिहा रईहव।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि बासी भोजन और दुर्गुण से दुर रहें।
· बासी भोजन आपके शारीरिक स्वास्थ्य को तथा दुर्गुण आपके मानसिक और सामाजिक छवि को बर्बाद करती है।
40
·
मोला-तोला अऊ बेर-कुबेर झन देखव; जउन हे
तउने ल बाँट बिराज के खा लव ।
गुरु घासीदास बाबा ने कहा है कि आपके पास जो भी भोजन,धन-संपदा और कार्य है उसे परिवार के सभी सदस्य आपस में बाँट लें; किसी भी छोटे-बड़े काम को मुझे करना है,आपको करना है, अथवा बाद में करना है ये सोचकर टालना मत।
41
·
बईरी संग घलो पिरीत रखहु।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि अपने शत्रु से भी प्रेम रखना।
·
क्योंकि वह अभी आपके लिए शत्रु हो
सकता है मगर मूलतः वह मेरा संत है; मेरा अपना है। गुरु घासीदास बाबा ने कहा है कि जतेक हव सब मोर संत आव, ककरो बर काँटा झन बोहौ। आप और आपके शत्रु दोनों
ही मेरे लिए एक समान हैं इसलिए दुश्मन के लिए भी प्रेम और सद्भावना रखना।
42
दान के लेवईया अऊ दान के देवईया दुनो पापी
होथे।
गुरु घासीदास बाबा
ने कहा है कि दान लेने वाला और दान देने वाला दोनों ही पापी हैं।
·
क्योंकि दान लेने वाला
षड्यन्त्रपूर्वक बिना मेहनत किये आपके संतान और बुजुर्ग माता-पिता के हिस्से को
छीन रहा है और आप खुद अपने संतान और बुजुर्ग माता-पिता के हिस्से को छीनकर खैरात
में उसे दे रहे हैं।
गुरु घासीदास बाबा के मुक्ता
1
सँसो-फिकर
झन करव, समसिया ले लड़े बर आगु बढ़व।
चिंता
न करें; समस्या का डटकर सामना करें।
2
नशा
मत करव, नशा ह नाश के उदिम आय।
नशा
न करें; क्योंकि नशा नाश का कारण है।
कोनों
मनखे ल बदनाम मत करिहौ।
किसी भी मनुष्य को बदनाम न करें।
4
मूर्ति
पूजा मत करव, मूर्ति पूजा करना मुरुखता आय।
मूर्ति
पूजा न करें क्योंकि मूर्ति पूजा मूर्खता है।
5
मरे
मनखे (पितर) के पूजा मत करव।
मृत
मनुष्य (पितर) का पूजा न करें।
·
मृत व्यक्ति जो खुद के
लिए कुछ नहीं कर सकता है वह आपके लिए क्या करेगा?
जेन सिरा गे हाँवय तेखर
पूजा पचिसठा मत करहौ।
मृत
मनुष्य का पूजा न करें।
7
हुम–हवन
अबिरथा बुता आय।
पूजा-हवन
न करें, यह व्यर्थ कार्य है।
8
कहूँ जाए के पहिली मन म शंका झन करहु ।
कहीं
भी जाने के पहले से मन में शंका न करें।
9
कोनों दिन, बेरा अऊ दिशा ह अपसगुन नई होवै।
कोई
दिन, समय और दिशा अशुभ नहीं होता है।
10
असली देवता दाई-ददा, पेड़-परबत अऊ
नदिया-तरिया हर आय।
वास्तविक
देवता माता-पिता, पेड़-पहाड़ और नदी-तालाब है।
11
राहु, केतु, गृहदोष, शनि भद्रा ल मत मानव,
कुंडली दोष के बात ह झूठा षड्यन्त्र आय।
राहु,
केतु, गृहदोष, शनि भद्रा को मत मानो, कुंडली दोष की बात असत्य और एक षड्यन्त्र है।
12
शंख मत फुँकव; शंख फुके ले ईश्वर या देवता
नई जागे, अबिरथा शोर मत करव।
शंख
मत फुको, शंख फुँकने से कोई ईश्वर या देवता नहीं जागता है, व्यर्थ शोर मत करो।
13
सुतई, कछुआ के हाड़ा ल बर्तन समझके कोई काम
म मत लावव।
मृत
जीव (सीप और कछुआ) के हड्डी को बर्तन के रूप मे उपयोग में मत लाओ।
14
छुआ-छूत मत मानव; कोनों मनखे अछूत नई
होवय।
छुआछूत
मत मानो, कोई मनुष्य अछूत नहीं होता है।
15
देवी-देवता ल मत मानव, ईंखर दलाल मन
तुँहला लूट लेहिं।
देवी-देवता
को मत मानो, अन्यथा इनके दलाल आपको लूट खायेंगे।
16
दुसर के नारी-पुरुष ले दुरिहा रहव।
गैर
स्त्री-गैर पुरुष से दुर रहें, अर्थात शारीरिक संबंध की अपेक्षा न रखें।
17
भाग के भरोसा झन करव; अपन किसमत खुदेच
लिखव।
भाग्य
के भरोसे मत रहो, अपनी किस्मत खुद लिखो।
18
अपन बचन म अडिग रहव, बचन ले मत मुकरव।
अपने
वचन (वादा) मे अडिग रहो, वादाखिलाफी मत करो।
19
दुसर के धन म लालच झन करव।
दूसरे
के धन, संपदा में लालच न करें।
20
मान बड़ाई म मत परव।
किसी
के झूठे तारीफ और बहकावे में मत आओ।
21
घर-परिवार के भेद कोनों ल झन बताहौ;
तूँहरे ठिठोली बन जाही।
अपने
घर-परिवार की गोपनीयता भंग न करें, अन्यथा आपकी हँसी होगी।
22
कखरो अहित मत करव।
किसी
भी जीव का अहित न करें।
23
लबारी अऊ असत बानी झन बोलाहौ।
झूठ
और असत्य बात न बोलें।
24
बइरी के मीठ बोली म मत फँसहु।
दुश्मन
चाहे कितना ही मीठा क्यों न बोले, उसके बहकावे में न फँसें।
25
परोसी के उन्नति म जलव मत, मेहनत करके अपन
उन्नति करव।
पड़ोसी
के उन्नति से दुर्भावना न करें, बल्कि खुद मेहनत करके उन्नति की ओर आगे बढ़ें।
26
बुरे मनखे के संग झन जाहौ।
बुरे
मनुष्य से दोस्ती न करें, उनके हमराही न बनें।
27
जेखर दुवारी म सनमान नई मिलय ऊँहा कभु झन
जाहु।
जिसके
आँगन में सम्मान न हो, या जहाँ आपको अपमानित किया जाता हो वहाँ कभी भी न जायें।
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