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रविवार, मई 17, 2020

कर्म, कर्मफल और कर्म के लेखा जोखा का सिद्धांत - श्री हुलेश्वर जोशी

कर्म, कर्मफल और कर्म के लेखा जोखा का सिद्धांत - आलेख श्री हुलेश्वर जोशी


कर्म का सिद्धांत क्या है? कर्मफल क्या है? इसे जानने के पहले हमें कर्म को जानना होगा, कि कर्म क्या है? कर्म किसे कहेंगे? कर्म अच्छे हैं या बुरे? इसके लेखा जोखा का क्या सिद्धांत है? कर्म का फल स्वयं के कर्म के अनुसार मिलता है कि हिस्सेदारी वाली होती है? इन सब प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए धरमचंद और करमचंद को जान लेते हैं।

करमचंद और धरमचंद दोनों बचपन के साथी हैं। दोनों का जन्म भी एक ही दिन हुआ है। कद, काठी और देखने में लगभग एक जैसे ही लगते हैं। कोई अजनबी यदि अलग-अलग समय में करमचंद और धरमचंद से मिले तो धोखे में रहेगा कि दोनों व्यक्ति जिनसे वह मिला है एक ही व्यक्ति है कि अलग अलग दो हैं। TWIN CELEBRITY SISTERS CHINKI MINKI की तरह।

करमचंद और धरमचंद दोनों आश्रम में पढ़ते थे तभी उनके गुरुजी ने इनके बीच मितानी करवा दिया। परिवार के बड़ों ने भोजली भी बदवा दिया। इस प्रकार से इनकी अच्छी गाढ़ी दोस्ती हो गई है। दोनों एक दूसरे के घनिष्ठ मित्र हो चुके हैं।

इनकी मित्रता कुछ-कुछ सुदामा के मित्रता से मिलता है। केवल असमानता इस बात की है कि, सुदामा और गोपाल दादीरस का पान नहीं करते हैं जबकि करमचंद और धरमचंद दादीरस के आदी हैं। इनकी मित्रता, मित्र के लिए समर्पण और सम्मान कर्ण से अधिक है। भिन्नता है तो केवल इस बात की कि, कर्ण ने दुर्योधन के इच्छा को अपना धर्म बना लिया है जबकि करमचंद और धरमचंद के मित्रता की आत्मा देशी चेपटी के भीतर बसती है। मानो ये चेपटी उनके लूँगी के गाँठ में स्वयं को गौरवान्वित समझते हों शायद इसी लिए चेपटी को ये मान्यवर अपनी आत्मा समझते हैं।

करमचंद अपने मितान धरमचंद के विवाह समारोह में नृत्य कर रहा था। अचानक बैण्ड वाले ने नागिन DANCE वाला MUSIC बजा दिया। फिर क्या था करमचंद नागिन DANCE करने लगा। बिधुन होकर नाचते नाचते बेहोश भी हो गया। करमचंद के बम में पथरीले सड़क के नुकीले पत्थर चुभ गया है इसके बावजूद वह नाच रहा है। नीचे लूँगी खून से लथपथ हो चुका है। उसके खून से कुछ और लोग भी लथपथ हो चुके हैं। चस्माराम भी खून से भीग चुका है।

दादीरस की दुकान के पास किसी ने चस्माराम को बताया कि उसका कपड़ा खून से भींग चुका है। चस्माराम अपने वस्त्र के भीतर शरीर को CHECK किया तब पता चला कि उन्हें कोई चोट नहीं है। वापस आकर चस्माराम ने BAND बाजा रूकवाया और लोगों को बताया तब पता चला कि करमचंद को चोट लगी है। करमचंद अपने लूँगी और शरीर के खून को देखते ही मूर्छित हो गया।

अब चलो समीक्षा करते हैं। पता लगाने का प्रयास करते हैं कि, करमचंद को क्यों चोट लगी? क्या पिछले जन्म में उसने कोई पाप किया था? क्या उसने किसी के लिए गड्ढे खोदे थे जिसमें वह गिरा है। क्या करमचंद पापी था? क्या करमचंद का नृत्य करना पाप था? क्या करमचंद और धरमचंद में पिछले किसी जन्म में कोई दुश्मनी थी? या कभी करमचंद और धरमचंद की होने वाली पत्नी के बीच कोई पिछले जन्म की दुश्मनी थी?

क्या सड़क बनाने वाले ठेकेदार की गलती थी? क्या सरकार की गलती है जो कच्चे रास्ते को उन्नत कर गिट्टी मुरम का रोड़ बनवा दिया? क्या BAND वाले की गलती है जो उसने नागिन DANCE के लिए MUSIC बजा दिया? क्या धरमचंद की गलती है कि उसने अपने विवाह में BAND लगवाया? क्या धरमचंद के बाप की गलती थी जो उन्होंने धरमचंद का विवाह तय कर दिया? क्या दादीरस का गलती है जिसे करमचंद ने पी रखी है? क्या दादीरस बनाने वाले गनेशुराम की गलती है? क्या धरमचंद के छोटे भाई मतवारीलाल की गलती है जिसने DISTILLED WATER OF DRIED FLOWER JUICE MEANS  MAHUA DARU खरीद लाया और करमचंद को पीने दिया है?

कही ये विधि का विधान तो नहीं है जो ऐसा होना तय ही था। परन्तु तय होने का भी कोई तो कारण अथवा सिद्धांत अवश्य होनी चाहिए। फल की जिम्मेदारी कौन लेगा? किसके या किस-किस के कर्म पर आरोप लगाया जाए जिसके कारण करमचंद अभी मूर्छित है?

उत्तर बिल्कुल समझ और बुद्धि के पकड़ से दूर ही है। हर अनुमान पहले सटीक जान पड़ता है, फिर कुछ ही समय में उत्तर से दशकों प्रकाशवर्ष दूर चले जाते हैं। यही प्रक्रिया अर्थात दूर और निकट का खेल बारम्बार नियमित रूप से पुनरावृत्ति होती है। करमचंद और धरमचंद की कहानी पढ़ने के बाद कर्मफल का जो सटीक उत्तर मिला है उसके अनुसार प्रतीत होता है कि यहाँ FULLY PARTNERSHIP GAME है। कोई अकेला व्यक्ति अथवा उसके पूर्वजन्म के कर्म ही उनके मूर्छा होने का कारण नहीं है। बल्कि प्रश्न के दायरे में आने वाले सभी व्यक्ति और उनके कर्म करमचंद के कष्ट का कारण हैं। संभव है किसी भी कर्म और कर्मफल का अकेला कोई व्यक्ति अथवा संबंधित व्यक्ति और उनके कर्म जिम्मेदार हों। इसलिए करमचंद के मूर्छा के लिए सभी कुछ-कुछ मात्रा में जिम्मेदार हैं; ऐसा मान लेना उचित प्रतीत होता है।

क्या कर्म का खाता होता है? क्या कर्म का एक ही ACCOUNT होता है एक जीवन के लिए। क्या एक जीवन के कर्म का ACCOUNT सैकड़ो लाखों की संख्या में हो सकता है? क्या पति-पत्नी की JOINT ACCOUNT होता है? क्या आपके कर्म के ACCOUNT से आपके निकट या दूर पीढ़ी को कुछ हिस्से मिलेंगे? क्या कर्म का ACCOUNT आपके जन्म जन्माँतर तक चलता रहेगा? कर्म के ACCOUNT अर्थात लेखा जोखा या खाता से संबंधित सैकड़ों प्रश्न उठते हैं। परंतु क्या इन सैकड़ों प्रश्नों का कोई अत्यंत सटीक उत्तर दे सकता है?

उत्तर आता है ‘‘नहीं।’’ नहीं क्यों? क्योंकि यह एक अनुमान है। मानक SOP है। आपका भ्रम मात्र है। सत्य तो क़दापि नहीं है। यदि सत्यता है, तो साक्ष्य भी मिलना चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे आपके YAHOO, HOTMAIL और GMAIL ACCOUNTS का साक्ष्य है। आपके SOCIAL MEDIA ACCOUNTS जैसे INSTAGRAM, TWITTER, BLOGGER, FACEBOOK और TIKTOK के साक्ष्य मिलते हैं। ओह् माफ़ करना TIKTOK भारत में प्रतिबंधित है। ठीक वैसे ही जैसे बैंकों के SAVINGS ACCOUNT, LOAN ACCOUNT, FIXED DEPOSIT, RECURRING DEPOSIT, LIFE INSURANCE और TERM PLAN इत्यादि का ACCOUNT होता है।

कर्म का खाता तो दिखाई ही नहीं देता। इसके साक्ष्य भी नहीं मिलते। तो क्या यह मान लिया जाए कि, कर्म का ACCOUNT नहीं होता? क्या ये मान लें कि कर्म की ACCOUNT जैसी बात कोरी कल्पना है?

मगर अभी भी इसमें थोड़ा संदेह नजर आता है। क्योंकि हम हजारों वर्षों से यह मानते रहे हैं कि, कर्म का ACCOUNT और लेखा जोखा होता है। फिर एक झटके में इन चंद प्रश्नों के झाँसे में आकर अपनी बनी बनाई SOP को खारिज करके अपनी अनुशासन क्यों बदल डालें? क्यों मानने लगें कि कर्म का ACCOUNT नहीं होता? खाता नहीं होता।

समस्या ये है कि, इसे मानने पर भी द्वन्द है। ‘कैसा द्वन्द?’ इसे समझने के पहले हम लगभग एक लाख ईसा साल पूर्व चलते हैं। नजूलनाथ और फजूलनाथ दो सगे भाई हैं। दोनों रतिहारिन की संतान हैं। रतिहारिन रोमसिंग कबीला के कबीला प्रमुख की पत्नी है। जब कबीला प्रमुख रोमसिंग दूसरे कबीलों को अपने कब्जे में लेने के अभियान में चले गये और लंबे बसंत तक वापस नहीं आए तो रतिहारिन को उनकी चिंता होने लगी। वह रोमसिंग की तलाश में निकल पड़ी। कुछ कबीला तक उनके यात्रा के दौरान उनका ख़ूब सम्मान हुआ।

रोमसिंग को खोजते हुए लगभग दो बसंत बीत जाने के बाद, रतिहारिन अपने रक्षकों और अश्व के बिना नदी किनारे वह स्वयं को पाईं। अब वह गर्भवती और भोली हो चुकी है। उन्हें पता नहीं कि कब, कैसे और किसके या किस-किस के योगदान से वह गर्भवती हुई है? वह आसपास के कबीले में गई तो किसी ने उसे बताया कि वह कबीला प्रमुख रोमसिंग की पत्नी है।

कुछ ही दिनों में रोमसिंग को भी इसकी सूचना मिल गई। वे रतिहारिन को अपने राज्य ले आये। अब शोध शुरू हुआ कि रतिहारिन कैसे गर्भवती हुई। सबके सब जानने में असफल रहे। तब एक दरबारी मंत्री ने कहा इसे प्रकृति का संतान मान लेना चाहिए अथवा शक्तिमान का आशीर्वाद मान लेना चाहिए। ठीक ऐसा ही हुआ। क्योंकि दिमाग खपाने और परिणाम नहीं मिलने की संभावना को देखते हुए दरबारी मंत्री की बात मान लेना ही बेहतर विकल्प था। वैसे आपने भी गोस्वामी तुलसीदास द्वारा श्री रामचरितमानस में लिखी चौपाई को सुना होगा जिसमें उन्होंने कहा है “समरथ को नहीं दोष गोसाईं, रवि सुरसरि पावक की नाईं।”

कुछ दिनों में रतिहारिन ने जुड़वा संतान को जन्म दिया। उनका नाम रखा गया, नजूलनाथ और फजूलनाथ। दोनों अत्यंत शक्तिशाली और अपने समय में विख्यात कबीला प्रमुख हुये। नजूलनाथ और फजूलनाथ के जन्म का रहस्य किसी को पता नहीं। स्वयं रतिहारिन को भी नहीं। क्योंकि दीर्घकाल तक वह बेसुध रही।

रतिहारिन स्मरण शक्ति खो चुकी है। मगर कोई शक्ति तो लगा है। कोई क्रिया तो हुई है जिसके कारण नजूलनाथ और फजूलनाथ का जन्म हुआ है। कोई तो ACCOUNT खोला होगा। प्राकृतिक संयोग के बिना रतिहारिन का गर्भवती होना संभव ही नहीं है।

रोमसिंह के पास विवेचना का कोई विकल्प नहीं था इसका मतलब ये नहीं कि यह पूरा मामला समझ से परे है। बल्कि स्पष्ट है। चूँकि रोमसिंग, नजूलनाथ और फजूलनाथ ही नहीं बल्कि उनके आगे के संतान भी अत्यंत शक्तिशाली हुए इसलिए किसी में साहस नहीं था कि कोई यह कहे कि नजूलनाथ और फजूलनाथ का जन्म ठीक उनके जैसे ही सामान्य संयोग से हुआ है। अर्थात रतिहारिन का बलात्कार हुआ है।

हालाँकि कर्म, कर्म के सिद्धांतों और उससे जुड़े इन प्रश्नों का सटीक और सर्वमान्य जवाब अभी तक किसी के पास नहीं है। अतः जब तक आप साहस और बुद्धि से काम नहीं लेंगे; तब तक आपको मानना ही पड़ेगा कि नजूलनाथ और फजूलनाथ प्रकृति की संतान है यानि शक्तिमान के आशीर्वाद से रतिहारिन गर्भवती हुई है।

अंत में यह साफ कर देना चाहता हूँ कि यह कहानी कर्म, कर्म के सिद्धांत, कर्म का खाता जैसे महत्वपूर्ण प्रश्नों के सटीक उत्तर देने में असफल है। आप स्वयं को अँधेरे से उजाले की ओर ले जाने का प्रयास करेंगे तो संभव है समुद्र तट के नन्हे कछुआ जैसे भ्रम में पड़कर चंद्रमा की रोशनी समझकर RESTAURANT में लगे LED LIGHTS के पास पहुँच जाएँ। इसलिए बुद्ध की बात मानिये, जो उन्होंने कहा है “अप्प दीपो भव”


यदि
दूसरे किसी के झाँसे में आएँगे तो आप फँसे हुए रह जाएँगे। आप मनुष्य हैं। सोचने, समझने और निष्कर्ष तक पहुँचने की शक्ति के साथ आपका जन्म हुआ है। इसलिए समीक्षा करिये और ख़ुद ही पता लगाईये कि क्या कर्म के लेखा-जोखा का कोई सिद्धांत होता है? जिसे हमारे कथित धर्म और धार्मिक नेताओं द्वारा प्रमाणित करने का प्रयास किया जाता है। आप चाहें तो नजूलनाथ और फजूलनाथ को शक्तिमान के आशीर्वाद से जन्मे मानकर ईश्वर मान लें या फिर प्राकृतिक संयोग से जन्मे जानकर रतिहारिन के साथ हुए घटनाओं का अनुमान लगा लें। जब आप रतिहारिन के साथ हुए घटना का समीक्षा करेंगे तो कुछ लोग आपको कहेंगे कि आप अधर्मी हैं, जो शक्तिमान पर प्रश्न कर रहे हैं। अधार्मिक कहलाने के भय से बेवकूफ बने रहना है तो बिलकुल बेवकूफ बने रहिये, अपने बौद्धिक क्षमताओं का इस्तेमाल मत करिये। फिर भी मैं तो यही कहूँगा कि नजूलनाथ और फजूलनाथ का जन्म भी प्राकृतिक संयोग ये ही हुआ है। चाहे वो दोनों रतिहारिन और उनके प्रेमी के बीच प्रेम के परिणाम हों या क्रुरतापूर्ण या सामूहिक बालात्कार के।

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उल्लेखनीय है कि यह लेख श्री हुलेश्वर जोशी के ग्रंथ "अंगूठाछाप लेखक" - (अभिज्ञान लेखक के बईसुरहा दर्शन) का अंश है।

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