‘‘भारत के लाज आंव मै‘‘
भारत के लाज आंव मै, मोला संग लगाले।
तहुं ल अपन संग ले जाहूं, मोर संग तंय जोरिया ले।।
भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले।
चना ओनहारी के उपजईया मय, भले अंकरी म खवाले।।
भारत के लाज आंव मै, मोला संग लगाले।
तहुं ल अपन संग ले जाहूं, मोर संग तंय जोरिया ले।।
मन मंदिर म तोला बसाएंव, तहुं मोला बसाले।
दाई-ददा के लाज राखे बर, मोर संग तंय हरियाले।।
भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले।
दुरिहा खडे हंव पराय जात अस, अपन जात अपनाले।।
भारत के लाज......
दुरिहा खडे हंव पराय जात अस, अपन जात अपनाले।।
दुनो के रंग, खुन हे लाली, लाली लाल रचाले।
करिया गोरिया के भेद काबर, मानुस जात चिनहा ले।।
भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले।
तेली, सतनामी अउ राउत, बामहन चाही ठाकुर कहाले।।
करिया गोरिया के भेद काबर, मानुस जात चिनहा ले।।
भारत के लाज......
तेली, सतनामी अउ राउत, बामहन चाही ठाकुर कहाले।।
मैं चाही गोंड़ या मुरिया आवंव, हिन्दू-हिन्दू कहाले।
हिन्दू चाहे मुश्लिम मैं इसाई, मानुज-मानुज चिनहाले।
भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले।
भारत के लाज......
कुदरी, टंगीया हांथ हे मोर, हरिया घलो धराले।।
चरोटा भात के खवईया संगी, चना मुर्रा चाही खवादे।
चरोटा भात के खवईया संगी, चना मुर्रा चाही खवादे।
रोजी मंजुरी नई करंव अब, जोशी संग सुंता बईठादे।।
भारत के लाज......
भारत के लाज......
भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले।
चना ओनहारी के उपजईया मय, भले अंकरी म खवाले।।
पेट भरईया आवव मैं किसान, भुंखा पेट सोवाले।
भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले।
भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले।
भारत के लाज आंव ...........................
कविता के माध्यम से श्री जोशी जी द्वारा जाति धर्म से परे रहने वाले किसान के माध्यम से जागरूकता लाने का प्रयास किया गया है। इसके माध्यम से अन्नदाता किसान को भी चित्रित करने का प्रयास किया है। उल्लेखनीय है कि इस कविता को श्री हुलेश्वर प्रसाद जोशी द्वारा 4थी वाहिनी माना रायपुर में भर्ती ड्यिूटी के दौरान दिनांक 08 12 2012 को लिखा गया था।
Image of Poet Shri Huleshwar Prasad Joshi
Very Nice
जवाब देंहटाएं