जोशी की गीता
असंगठित शब्द, बिना लय-छंद कविता
एक आग्रह "विनती", जोशी की गीता
झूठ फरेब कुरीति और आडम्बर
नैसर्गिक न्याय सबके लिए बराबर
चोरी चकारी, झूठ लूट डकैती
धर्म नहीं तेरे बाप की बपौती
धोखा अफवाह मोबलिंचिंग हिंसा
एक रास्ता है अब करले अहिंसा
स्वर्ग नरक नहीं कोई जन्नत
है मेरा भी एक ही मन्नत
संगठन शक्ति की तुम करते हो बर्बादी
निष्ठा कर संविधान में, जो देती आजादी
5000 हजार साल पीछे की कल्पना
कोई गैर नहीं, आज तेरा भी है अपना
अपना पराया, उच्च नीच
एक सेल्फी तो साथ में खींच
खोद के गड्ढा जिसने गिराया
उठा उन्हें भी नही पराया
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रचनाकार - श्री एचपी जोशी
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