महान होने की चाहत में भूल गया, कि मैं कितना गलत और स्वार्थी हूँ
जन्म से ही उच्च नीच की कहानियां सुनते हुए पला बढ़ा हूँ, उच्च लोगों की आवभगत, आदर सत्कार, सम्मान और पूजा देखा हूँ। नीच लोगों के तिरस्कार, अपमान और उनसे घृणित व्यवहार को देखकर मेरा पूरा फिजिक्स कांप चुका है गणित भी आपस में टकरा टकरा कर लाखों विस्फोट कर रहे हैं। मेरा गणित प्रभावित है, प्रेरित है तो सिर्फ और सिर्फ उच्च नीच के विभाजनकारी सिद्धांत और उनके अर्थात उच्च लोगों के अधिकार व स्वाभिमान और नीच लोगों के गुलामी व कर्तव्य से। मेरे गणित का क्या दोष है? क्या मनुष्य को देख और सुनकर नही सीखना चाहिए? क्या जिसे अपने लोगों ने, समाज और धर्म ने जिन सिद्धांतों को अच्छा कहकर तारीफ किया, उसका पालन किया, ऐसे परम्परा को ऐसे संस्कृति को चाहे क्यों न वह अमानवीय है भूल जाऊं? मुझे सिद्धांत के अमानवीय अथवा विभाजनकारी होने से क्या मतलब, मैं तो अपने संस्कृति और परंपरा के नाम पर बिना कोई प्रश्न किये अपने लीडर के पीछे भेंड़ की तरह चलते रहना चाहता हूं। क्योंकि क्रांतिकारी होने, आंदोलन करने अथवा बनी बनाई परंपरा को समाप्त करने का प्रयास करना अत्यंत कठिन है। मैं ऐसे रिवाज का विरोध क्यों करूँ जिसमे मुझे ही फायदा हो? मुझे दूसरे दबे हुए वर्ग का प्रतिनिधित्व करने से तो हानि ही है फिर क्यों अपने पैर में कुल्हाड़ी मारूँ।
मेरी पत्नी कहती है कि हमारा अगला जन्म उसी नीच लोगों के बीच होगा तो क्या करेंगे? वह कहती है आज हम स्टेटबैंक के कर्जदार हैं तो चाहे किसी भी शर्त में हो हमें ब्याज सहित लौटाना ही पड़ेगा, वह कहती है कर्म का एकाउंट पहले जन्म के साथ ही खुल चुका है जो बारम्बार नही बदलेगा ठीक वैसे ही जैसे आप राजपत्र में नाम बदलवाने, चेहरे का प्लास्टिक सर्जरी करवाकर चेहरा बदलने के बाद भी स्टेट बैंक से कर्ज वाला एकाउंट कर्ज जमा किये बिना बंद नही कर सकते। जिस प्रकार आप सैकड़ों बैंक में कई प्रकार के एकाउंट खोलते हैं वैसे ही आप अपने जीवन मे करोड़ो एकाउंट खोलते रहते हैं। आपको ज्ञात है आपके मृत्यु के बाद भी कर्ज देने वाला बैंक आपके चल अचल सम्पति को कुर्की करवा लेती है अर्थात मरने के बाद भी लेनदेन चुकता होने के बाद ही आपका एकाउंट बंद होता है। मेरी पत्नी मुझसे कहती है आप ऐसा कोई एकाउंट मत खोलिए जिससे आगे आपको दाण्डिक ब्याज सहित लौटना पड़े, आप प्रयास करिए कि ऐसा एकाउंट खोलिए जिसमें ब्याज सहित न भी सहीं बराबर या उससे कम मिले तो भी जीवन सुखमय ही बना रहे, चाहे मिले या न मिले जीवन मुश्किल न हो, अपमान और तिरस्कार न मिले, चाहे तब जीवन मनुष्य का हो या पशु, पक्षी या किट पतंगे का हो।
मोक्ष, आध्यात्म और तपस्या एकांत नही है - श्रीमती विधि हुलेश्वर जोशी
वह कहती है बिना मृत्यु के मनुष्य जानवर नहीं हो सकता, जानवर पक्षी नही हो सकते, पक्षी कीड़े नही हो सकते और कीड़े मनुष्य नही हो सकते। कहती है शेर भालू नही हो सकता और भालू शेर नहीं हो सकता। हो सकता है विज्ञान ऐसा अविष्कार कर ले तब ऐसा संभव हो, मगर अभी तो ऐसा नही हो रहा है। आज धार्मिक आध्यात्मिक मान्यता के अनुसार आत्मा परमात्मा का प्रक्रिया निरंतर जारी रहेगा, श्रेष्ठ मानवीय कर्म के बिना जीवन मृत्यु के चक्र से मोक्ष भी नहीं मिलेगा, मोक्ष मिला भी तो वह भी कुछ निर्धारित समय के लिए ही मिलेगा। मोक्ष से भी आप बोर हो जाएंगे, ठीक जैसे अकेले शून्य का अधिक महत्व नहीं, अकेलेपन में आप भी नही रह पाएंगे। आपको अपने होने पर संदेह होने लगेगा और आप मेरे तलास में फिर जन्म मरण के चक्र में वापस लौट आएंगे क्योंकि हित-मित, साथी या मितान के बिना हर कोई अपने जीवन को व्यर्थ और नीरस जान लेता है। आपका यह सोचना कि आप आध्यात्म करेंगे, तपस्या करेंगे तो कब तक? क्या वहां आपका साथी नही होगा? साथी तो वहां भी मिलेगा, आप स्वयं अपने साथी होंगे। आप स्वयं को पूर्ण अपूर्ण पाकर वापस लौट आएंगे तपस्या और आध्यात्म से क्योकि तब जो अधिक मिल जाएगा उसे रखोगे कहाँ? या फिर खाली हो जाएगा तो खालीपन को भरोगे किसमें? आपने अभी कल ही एक कविता लिखा है "आध्यात्मिक प्रेमी और उनके संवाद" यह क्या है? उस कविता को समीक्षा करेंगे तो पाएंगे उस कविता में काल्पनिक प्रेमी और प्रेमिका आपके भीतर ही द्वंद वार्तालाप कर रहे हैं, ठीक आध्यात्म और तपस्या भी इस कविता की भांति ही अंदर ही अंदर बात करने का बेहतर तरीका है, इसी तरीके से आप कुछ बेहतर पा सकते हैं ऐसा उन्हें लगता हैं जो इस मार्ग में चलते हैं। तब आप अकेले शरीर मे भी अकेले नही हो पाएंगे, आपके शरीर में और अधिक भीड़ होंगी, अधिक द्वंद होंगे, अधिक वार्ता होगी, बुद्धि में अधिक जोर होगा। आप अपने आराध्य को आकर्षित करने के लिए अधिक बल का प्रयोग करेंगे, सायद जितना आपको विशालकाय पर्वत के ऊपर गट्ठा लेकर चलने में ताकत लगाना पड़ेगा, सायद जितना बैल गाड़ी में लगे बैल को नदी का चढ़ाव चढ़ने में लगेगा उससे भी अधिक। मतलब यह कि आप अकेले कहीं भी किसी भी स्थिति में नहीं होते, आप अकेले हो भी नही सकते, यह बात केवल आपके लिए नहीं हर जीव जंतुओं के लिए है।
ज्योतिष की औकात नही कि वह 100 फिसदी सटीक भविष्यवाणी कर सके - श्रीमती विधि हुलेश्वर जोशी
मैंने कहा "मुझे इस जन्म में जो अच्छा लगता है, मेरे स्वार्थ के लिए अच्छा है वही करता हूँ, अगले जन्म को किसने देखा है?" इतना कहते ही जैसे उन्हें मौका मिल गया बोलने लगी आपको ज्योतिष शास्त्र में बड़ा विश्वास है, आपके कुछ परिचित लोग आज भी ज्योतिषी हैं, कुछ हद तक आप भी ज्योतिषी होने का स्वांग करते थे। जाओ अपने किसी ज्ञानी ज्योतिषी के पास या पूरे विश्व मे खोजिए सायद कोई ज्योतिषी हो जो आपको अगले जन्म का दावा करके बता दे, मैं तो कई ज्योतिषी को जानती हूँ जो बड़े बड़े दावे और तरीके बताते फिरते हैं। सटीक और 100फीसदी अनुमान लगाने के नाम पर करोड़पति बन चुके हैं। यह बात अलग है कि आपका एक ज्ञानी ज्योतिषी दोस्त जो अपने स्वयं का विवाह सफल बना नहीं पाया वह दूसरे के विवाह को सफल करने का तरीका बताता है, कुंडली देखकर गुण कम या अधिक मिलने का दावा करता है। ऐसे झूठे लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी के लिए FIR करना चाहिए, आपको जिसने आपके वैवाहिक जीवन के बारे में बताया था वह सरासर झूठ निकला फिर भी आप उनके भक्त बने फिर रहे हैं। कुछ लोग जो स्वयं खुश नही रह पा रहे हैं वे खुश रहने के योग बताते हैं जो कभी दान नही किया वह दान करना सीखाता है। जो अपने घर में शाम को क्या सब्जी बनेगा नही जानता वह लोक परलोक का भविष्यवाणी करता है, जो अपने मांसाहारी और शराबी पुत्र के चरित्र को जान नही पाता वह आपके साथी के चरित्र पर प्रश्नचिन्ह बनाता है। वह जो सड़े हुए नारियल को अपनी अज्ञानता छिपाने के लिए शुभ बता देता है वह जो लेफ्टिनेंट कर्नल का स्पेलिंग नहीं जानता, हिंदी में भी नही लिख पाता वह आपको कहता है आपकी बेटी आर्मी में कर्नल बनेगी। वह जो खुद अधिक खा कर अपना हाजमा बिगाड़ लेता है वह आपको संयम सिखाता है। आप बचपन में थे तब से पता है 2 को 2 से जोड़ेंगे तो 4 ही होगा यह सही है ऐसा मान्य है मगर आप 5 लोगों से अपना कुंडली बनवाओगे तो 5 के 5 अलग अलग भविष्यवाणी करेंगे, आगे आप 50 के पास जाओ कुंडली बनवाओ सब घुमा फिराकर बताएंगे, संभावना बताएंगे, वह भी सटिक नहीं। सत्य और सही अनुमान कोई नही बताएगा, 99% झूठ ही मिलेंगे, कुछ दावे भी किये जायेंगे मगर उससे शीघ्र ही पर्दा भी उठ जाएगा। बोलने लगी पूरे विश्व के ज्योतिषियों में कोई एक ज्योतिष भी नही होगा जिसका 30% भविष्यवाणी भी सही अथवा सटीक हो और उनके उपाय वास्तव में सही हों। यदि ऐसा कोई है तो मेरा चुनौती है साबित करे कि उनका भविष्यवाणी सही हो। उस ज्योतिषी की बात तो आपको याद होगा ही जिसने कहा था कि हम दो जुड़वा बेटी के माता पिता होंगे, क्या सही साबित हुआ? हमारे वैवाहिक जीवन अत्यंत सरल और सुखमय होगा उसने कहा था, उसने कहा था हमारा विचार शतप्रतिशत मिलेगा। यदि विचार शतप्रतिशत मिल रहा है तो आज हम वादविवाद में क्यों उलझे हैं? क्यों संघर्ष कर रहे हैं?
न्याय करना मेरे आचरण में नही क्योंकि मैं मक्कार और स्वार्थी हूं - हुलेश्वर जोशी
मेरे ज्योतिषी दोस्त और विश्वसनीय ज्योतिष शास्त्र के बारे में इतना बुराई और कमी सुनकर अंदर ही अंदर क्रोध बढ़ने लगा, मगर क्या करूँ उनसे विवाद करना अत्यंत घातक आत्मघाती है इसलिए छत ऊपर चला गया। बहुत सोचा, बहुत कुछ समझ मे आया मगर इतने हजारों साल से मेरे पूर्वजों के भरोसे को क्यों तोड़ दूँ? क्यों पत्नी के कहने मात्र से अपने परंपरा और विश्वास से विमुख हो जाऊं? जिसे मेरे पूर्वज हमेशा से मानते आए हैं उन्हें गलत क्यों प्रमाणित कर दूं? क्यों उस विचारधारा को गलत मानकर अपने पूर्वजों के बुद्धिमत्ता पर प्रश्न करूँ? इससे बेहतर है कि सही गलत को छोड़कर बनी बनाई नियम, परंपरा और संस्कृति पर चलना बेहतर समझता हूं। चाहे मेरे पूर्वज गलत रहे हों, उनके सिद्धांत मानवता के खिलाफ रहा हो या फिर संकुचित विचारधारा से प्रेरित हो, अलग से दिमाक नही लगाऊंगा यदि ये सिद्धांत मुझे महान बताता है या फायदा पहुचाता है अथवा मेरे सम्मान के लिए अच्छा है तो इसका विरोध नही करूँगा। अच्छा भला मेरा स्वार्थ पूरा हो रहा है और पत्नी कहती है सबको बराबर समझो सबसे बराबर का सम्मान दो, मुझे बड़ा गुस्सा आता है पत्नी ऊपर क्योंकि मैं महान हूँ, महान बने रहना चाहता हूँ इसलिए पत्नी के बातों का मेरे लिए कोई औचित्य नहीं है। मैं तो दूसरे व्यक्ति से नफ़रत, घृणा और द्वेष करते रहूंगा; मैं तो केवल अपना स्वार्थ सिद्धि के लिए अग्रसर रहूंगा। दूसरे लोग, दूसरे समाज, दूसरे वर्ण, दूसरे धर्म और दूसरे सभ्यता को झूठ और गलत समझता रहूंगा। अपने समाज, वर्ण, धर्म और सभ्यता की समीक्षा नहीं करूंगा क्योंकि समीक्षा करूँगा तो मैं स्वयं भी हर वर्गीकरण में नीच हो जाऊंगा, खुद से घृणा और अपराधबोध से ग्रसित हो जाऊंगा। इसलिए यह तय रहेगा कि मैं, मेरा परिवार, मेरी जाति, मेरा वर्ण, मेरा धर्म, मेरा समाज और मेरी सभ्यता सबसे श्रेष्ठ है। चाहे कोई कुछ भी समझे, कुछ भी बोले, कुछ भी करे मैं अपने पूर्वजों के मान्यता के साथ रहूंगा, चाहे कोई कुरीति कहे, अमानवीय कहे मुझे इससे कोई फर्क नही पड़ेगा। कोई मुझे सोचने पर मजबूर करेगा, मेरे विश्वास के खिलाफ बोलेगा तो धार्मिक आस्था को हानि पहुचाने का झूठा आरोप लगाकर उसे जेल भेजवा दूंगा।
यह लेख श्री हुलेश्वर जोशी के अप्रकाशित पुस्तक अंगुठाछाप लेखक का एक हिस्सा है। श्री जोशी अपने पुस्तक के माध्यम से समाज को एक नवीन दर्शन की ओर मोडने का प्रयास कर रहे हैं, हालांकि उनका स्वयं मानना है वे असफल दार्शनिक हैं।
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