"जीवन बचाओ मुहिम"

हत्यारा और मांसाहार नहीं बल्कि जीवों की रक्षा करने वाला बनो।


रविवार, मई 31, 2020

कहीं आपको "कलर विजन" नामक आंखों की बीमारी तो नहीं? - श्री हुलेश्वर जोशी

कहीं आपको "कलर विजन" नामक आंखों की बीमारी तो नहीं? - श्री हुलेश्वर जोशी

"जब मैं काले चश्मे पहनकर कड़ी धूप में निकलता हूँ तो रंगों की वास्तविकता समझ से परे हो जाता है; मतलब एक प्रकार से ^कलर विज़न^ का रोगी हो जाता हूँ" यही पूरे मानव समुदाय की समस्या है।

मेरा संकेत किसी एक विशेष विचारधारा के गेरुआ में बंधकर जीने वालों की ओर है। मेरा टारगेट किसी विशेष 'वाद' पर आंख मूंदकर जीने और दूसरे वाद को समझने से मना कर देंने वाले लोग हैं। मैं किसी एक वाद और विचारधारा का समर्थक अथवा विरोधी होने की मानसिकता के खिलाफ लिख रहा हूँ। मैं अपने विचार को दोहराना चाहूंगा जिसमे मैंने कहा है - "अत्यधिक उपयोगी और अच्छे रीति नीति भी समयकाल, सीमा और परिस्थितियों के अनुसार कुरीतियों में बदल जाते हैं अथवा जो पहले मानवता और प्रकृति के अनुकूल था कभी भी उसके प्रतिकूल हो सकता है।" आप कहेंगे मैं अपना विचार थोप रहा हूँ, हो सकता है थोप रहा हूँ ऐसा संभव है मगर सत्य तो यही है कि सदैव से विशिष्ट बुद्धि और शक्ति के लोग सदा से सामान्य बुद्धि और शक्ति वाले लोगों के ऊपर अपने विचार, नियम और संस्कृति को थोपते आ रहे हैं। मैं विशिष्ट बुद्धि और शक्ति वाला इंसान नहीं हूं मुझे होना भी नहीं, मैं किसी एक विचारधारा या वाद में पड़कर अपने बुद्धि और शक्ति को नियंत्रित करने के पक्ष में नही हूँ। यदि कोई व्यक्ति दुष्ट लक्ष्य और कुटिल कर्म से प्रेरित है तो उनके बुद्धि और शक्ति पर अवश्य रोक लगानी चाहिए, परंतु जिनसे सार्वभौमिक मानव समाज, जीव जंतुओं और प्रकृति को थोड़ा भी लाभ होने की संभावना हो उनपर नियंत्रण केवल उनके मानव अधिकार का हनन नहीं बल्कि सारे मानव समाज, प्राणी जगत और प्रकृति के साथ अन्याय है।

निश्चित ही बुद्धि और शक्ति के सदुपयोग पर नियंत्रण करने वाले समस्त प्रकार के सिद्धांत, नियम और परंपरा गलत ही हैं। यदि आपके आध्यात्मिक, पारिवारिक, सामाजिक और धार्मिक सिद्धांत, नियम या परंपरा ऐसे ही आपके शक्ति और बुद्धि को काम करने से रोकती हो तो ऐसे बंधन से आपकी मुक्ति आवश्यक है। मैं केवल तीन विषय तक आपके शक्ति और बुद्धि की आजादी का वकालत नही कर रहा हूँ ये तीन केवल एक उदाहरण के लिए है। राजनैतिक, आर्थिक और प्रशासनिक विषयों पर बिना किसी राजनैतिक चश्मे के समीक्षा करने का अधिकार होनी चाहिये, यदि आप किसी एक मानसिकता से प्रेरित हैं तो आपके 90% समीक्षा गलत हो सकते हैं।

आपके बुद्धि पर नियंत्रण लगा दिया जाए तो आप किसी निष्कर्ष पर नही पहुच सकेंगे, गुलाम ही रहेंगे। आपके दिमाक लगाने पर रोक लगा दिया जाए तो आप मनुष्य नही हो पाएंगे, आप कोई शोध नहीं कर पाएंगे आपके वैज्ञानिक होने की संभावना समाप्त हो जाएगा। जबकि हर मनुष्य में वैज्ञानिक होने के समान गुण है यह बात अलग है कि कोई अंतरिक्षयान बना सकता है कोई खेत में मेड बना सकता है कोई भोजन में नए स्वाद ला सकता है कोई फुलवारी के जगह सब्जी की बाड़ी लगा सकता है। कोई आपके मानसिकता को बदलकर सद्गुणों की ओर ले जा सकता है तो कोई आपको दुर्गुणों की कोठी बना सकता है। यदि मैं आपके बुद्धि पर नियंत्रण करने के पक्ष में हूँ इसका मतलब यह है कि मुझे आपके बुद्धि पर संदेह है आपको मूर्ख या कुटिल समझता हूं; यदि मैं आपके शक्ति में नियंत्रण का वकालत करता हूँ इसका मतलब आपको दुष्ट समझता हूं या फिर मुझे अपने शक्ति के क्षीण होने से भयभीत हूँ।

अंत में, आपसे अनुरोध है बुद्धि और शक्ति का मुक्त परंतु संतुलित प्रयोग करिए, किसी एक वाद या विचारधारा में बंधकर मत रहिए। विकासशील रहिए स्वयम को विकसित होने के भ्रम में मत रखिए, देशकाल और परिस्थितियों के अनुसार आप भी आगे बढिए.... कब तक पीछे चलकर भीड़ बढ़ाने का काम करेंगे कभी अपने पीछे बड़ी भीड़ बनाकर बढ़ने का प्रयास करिए। क्योंकि जो भीड़ का नेतृत्वकर्ता है उसमें और आपमें बराबर योग्यता है, केवल जरूरत है तो अपने बुद्धि और शक्ति को जानने की; इसलिए अपने बुद्धि और शक्ति का समीक्षा करिए, वैज्ञानिक बनकर शोध करिए। मैं जिस काले चश्मे को पहनकर धूप में निकलता हूँ वह मेरे समझ को संकुचित कर देती है इसलिए अब मैं सनग्लास वाला चश्मा पहनना शुरू कर दिया हूँ धूप में कई बार अपने चश्मे भी निकाल कर सामने वाले का समीक्षा भी कर लेता हूँ। आप भी काले चश्मे से मुक्त होने का प्रयास करिए, क्योंकि ये जो काले चश्मे है कलर विजन बीमारी से कम नही है।

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लेखक - शिक्षाशास्त्र में स्नातकोत्तर है परंतु अंगूठाछाप लेखक "अभिज्ञान लेखक के बईसुरहा दर्शन" नामक आत्मकथा लिखने में मस्त है।


Writer : Shri HP Joshi


शनिवार, मई 30, 2020

श्री अजीत जोगी अमर हैं, महात्मा जोगी अमर रहेंगे - हुलेश्वर जोशी

श्री अजीत जोगी अमर हैं, महात्मा जोगी अमर रहेंगे - हुलेश्वर जोशी
Shri Ajit Jogi is immortal, Mahatma Jogi will remain immortal - Huleshwar Joshi

अजीत जोगी कौन हैं?
एक गरीब छत्तीसगढ़िया किसान के बेटा हैं, असुविधाओं में जीने और पढ़ने वाले मेरिटधारी स्टूडेंट के रूप में भी जान सकते हैं। आप उन्हें छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में जान सकते हैं, आप उन्हें आईपीएस, आईएएस, इंजीनियर और उकील के नाम से से जान सकते हैं। आप उन्हें प्रशासनिक अधिकारी के बजाय राजनैतिक व्यक्ति के रूप में जान सकते हैं उन्हें सांसद, विधायक, विपक्ष के दमदार नेता और कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता के रूप में भी जान सकते हैं। फिर भी ख्याल रखना महात्मा जोगी वास्तव में क्या और कितना थे उसे कोई नहीं जान सकेगा। सबकी अपनी दृष्टिकोण है आप उन्हें ज्यादा जानें का फिर कम; आप उनके प्रसंशक हों या निंदक कोई बात नहीं उनके दिशा में उनके बनाये और चले रास्ते में चलकर देखिए वह "गुरु" से  कम नही होंगे। 

महात्मा जोगी कितना गलत हैं?
मनुष्य अत्यंत बुद्धिमान प्राणी है, हर मनुष्य के अपने अलग अलग दृष्टिकोण है, हर व्यक्ति के पास अपनी अपनी तराजू है, हर व्यक्ति के आंखों में अपने अलग अलग रंग के चश्मे लगे हैं, हर आदमी समीक्षा और उचित अनुचित का बोध भी रखता है। इसके बावजूद कुछ चंद लोग मेरे (लेखक) जैसे भी हैं जिन्हें कल्याणकारी होने से मतलब नहीं, मैं अत्यंत स्वार्थी व्यक्ति हूँ अपने हिसाब से दुनिया को स्थापित करके देखना चाहता हूं। बचपन में हमारा गर्मियों का दिन जेठू गौटिया के आम के बगीचे ही गुजरता था, बहुत छोटे से लेकर युवा होने तक आम के फल लगे आम के बगीचा हमें अत्यंत आकर्षित करते। एक दिन मेरा एक साथी बोलने लगा "ईश्वर अत्यंत नासमझ है।" मैंने पूछा क्यों? क्या हुआ? तुम ईश्वर के ऊपर प्रश्न खड़ा कर रहे हो? उन्होंने कहा आम हम सबको पसन्द है फिर उन्होंने आम को कद्दू जैसे बड़े आकार के और डूमर जैसे जड़ से लेकर डाली के अंतिम छोर तक फलने वाले नहीं बना पाया। इसका मतलब आप सोचिए ईश्वर कितने अदूरदर्शी थे, ये बात मेरे दूसरे साथी भी मानने लगे थे, मैं भी मानने को मजबूर था क्योंकि मुझमें भी अविकसित बुद्धि जो थी। एक दिन रात में मेरे दादा जी हम भाई बहनों को कहानी सुना रहे थे तब मैंने उनसे पूछा क्या ईश्वर अत्यंत नासमझ थे? तब दादा जी सुनकर हँसने लगे, फिर चुप होकर समझाने लगे बोले हम ईश्वर को मानते हैं या नहीं यह बात महत्वपूर्ण नहीं आप आम को ईश्वर द्वारा निर्मित मानें या फिर क्यों न प्रकृति की देन मगर आम का पेड़ अत्यंत संतुलित आकार के होते हैं और उसके फल भी। आगे उन्होंने एक बड़ी कहानी भी सुनाया जिसमें बुद्धिलाल ईश्वर का गलती खोजने निकला रहता है तभी थककर रास्ते में ही लगे आम के पेड़ के नीचे बैठकर ईश्वर से कहता है देखो तुम कितने नासमझ हो आम के पेड़ को इतना विशालकाय बना दिया मगर फल को इतना छोटा और मनुष्य के सामान्य पहुच से दूर रखें हो। बुद्धिलाल बड़बड़ाते हुए ईश्वर को कोशते हुए वहीं आराम करने लगता है अचानक आंख खुलती है तो लाठी भांजने लगते हैं क्योंकि किसी ने उसके शिर को मार दिया था, आजु बाजू और पेड़ के पीछे देखा तो समझ मे आया कोई नही है। सोचा पक्का भगवान आकर उन्हें मार गए होंगे, भगवान उनसे जलने जलने लगे हैं, आसमान की ओर चिल्लाकर बोलते हैं तुम धन्य हो भगवान आज तुम्हारी दुश्मनी भी देख लिया तुम कितने कमजोर हो जो छिपकर मुझपर वार कर रहे हो, आओ हिम्मत है तो मेरे सामने आकर कुश्ती कर लें। इतना बोलते ही एक पके आम उनके सामने ही गिर गया, फिर दूसरा तीसरा..... सैकड़ों आम गिरने लगे क्योंकि जोर की आंधी चलने लगी थी। उन्होंने समझा अब तो पक्का भगवान उनके दुश्मन बन गए हैं सो उन्होंने लाठी भांजते हुए दौड़ते दौड़ते कोसों दूर अपने घर पहुच गए, पत्नी पूछती है भगवान के कितने गलती निकाले? बुद्धिलाल बोलने लगे गलती तो करोड़ निकाल दूँ मगर अब वे मेरे दुश्मन बन गए हैं जैसे तैसे जान बचाकर आया हूँ कहकर पूरी वृत्तांत अपनी पत्नी को बताया। पत्नी पेट पकड़ पकड़ कर हँसने लगी, बुद्धिलाल को क्रोध आने लगा अंततः पत्नी थोड़ी देर उनके मूर्खता से वापस लौटकर उन्हें समझाई तो समझ में आया कि ईश्वर सही हैं बुद्धिलाल ही, व्यर्थ के मानसिकता में पड़े थे। यदि आप भी बुद्धिलाल के जैसे इंसान हैं तो आप महात्मा जोगी के लाखों गलती, असफलता और कमजोरी निकालने का प्रयास कर सकते हैं।

महात्मा जोगी के बारे में, चंद बातें
# श्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी केवल चंद नाम के मोहताज नहीं, कुछ उपलधियों तक सीमित नहीं वे छत्तीसगढ़ राज्य के हर कण में विद्यमान रहेंगे; क्योंकि श्री अजीत जोगी भारतमाँ के रतन बेटा है, छत्तीसगढ़ महतारी के दुलरुआ हीरा बेटा है। 
# श्री जोगी; श्री अजीत जोगी को केवल अजीत प्रमोद कुमार जोगी ही नहीं बल्कि महात्मा जोगी के नाम से भी जाना जाएगा, हां वही अजीत जोगी जो जाति, धर्म और राजनीतिक से भी दूर काबिलियत और संघर्ष का रोल मॉडल हैं। महात्मा जोगी कभी हारने वाले नहीं सदैव जीतने वाले रहे हैं।
# महात्मा जोगी जो गरीब और शोषित छत्तीसगढ़िया के लिए भगवान से कम नही थे।
# महात्मा जोगी हमें कई वर्ष नही, कई दशक नहीं बल्कि सैकड़ों शताब्दी तक आपको संघर्ष करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे।
# महात्मा जोगी जो कई शताब्दियों तक जिंदा रहेंगे। 
महात्मा जोगी कभी मरेंगे नहीं।
# महात्मा जोगी जिंदगी की जंग हारे नहीं बल्कि जीत चुके हैं।
# जो उनके विरोधी हैं जो उन्हें अपने किसी स्वार्थगत कारणों से बदनाम करने की कोशिश करते रहे उनसे भी निवेदन हैं अब आपके स्वार्थ के बीच कोई अटकाव नही है; मगर ख्याल रखना महात्मा जोगी आपके अंदर भी जिंदा हैं, आपके जीवित रहते वे आपके दिलोदिमाग से अलग नही होंगे। क्योंकि महात्मा जोगी जिंदा हैं।

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Writer Shri HP Joshi (Image)

गुरुवार, मई 21, 2020

हम सब भारतीय एक सामान - श्री जोशीजी की कविता

"हम सब भारतीय एक सामान"
हम सब भारतीय एक सामान हमारे मन में कोई पाप नहीं।
हमको जी भर के जीना है, अपना किसी से बात नहीं।।
हम मानवता को जानते हैं, और किसी के खास नहीं।
हम सब भारतीय एक सामान मन में कोई बात नहीं।।


हिन्दू मुस्लिम दोनों ही भाई सिक्ख इसाई भी नहीं पराई।
आओ मेरे साथ आओ, आओ हो जाओ मेरे साथ में भाई।।
हमने भी तो कसम है खाई, भारत को आओ महान बनाई।
करें एक साथ काम हम, हुलेश्वर जोशी भी नहीं पराई।।


हम सब भारतीय एक सामान, हमारे मन में कोई पाप नहीं।
आओ होली के रंग में रंगें, दिवाली बिन मन उजियारा नहीं।।
हरियाली अउ गेड़ी तिहार, तीजा बिन राखी का मोल नहीं।
हम सब भारतीय एक सामान मन में कोई बात नहीं।।

हम सब भारतीय ........................


यह कविता श्री हुलेश्वर प्रसाद जोशी द्वारा दिनांक 07-12-2012 को 4थी बटालियन माना कैम्प रायपुर में  लिखा गया थाl इस कविता के माध्यम से हर भारतीय नागरिक को एक समान होने का संदेश दिया गया है, कविता में हिन्दी छत्तीसगढ़ी परम्परा का भी उल्लेख किया गया है।

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‘‘भारत के लाज आंव मै‘‘ - श्री जोशीजी की कविता

‘‘भारत के लाज आंव मै‘‘
भारत के लाज आंव मै, मोला संग लगाले।
तहुं ल अपन संग ले जाहूं, मोर संग तंय जोरिया ले।। 

मन मंदिर म तोला बसाएंव, तहुं मोला बसाले। 
दाई-ददा के लाज राखे बर, मोर संग तंय हरियाले।।
भारत के लाज......

भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले।
दुरिहा खडे हंव पराय जात अस, अपन जात अपनाले।। 
दुनो के रंग, खुन हे लाली, लाली लाल रचाले।
करिया गोरिया के भेद काबर, मानुस जात चिनहा ले।।

भारत के लाज......

भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले।
तेली, सतनामी अउ राउत, बामहन चाही ठाकुर कहाले।। 
मैं चाही गोंड़ या मुरिया आवंव, हिन्दू-हिन्दू कहाले। 
हिन्दू चाहे मुश्लिम मैं इसाई, मानुज-मानुज चिनहाले।
भारत के लाज......

भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले। 
कुदरी, टंगीया हांथ हे मोर, हरिया घलो धराले।।
चरोटा भात के खवईया संगी, चना मुर्रा चाही खवादे। 
रोजी मंजुरी नई करंव अब, जोशी संग सुंता बईठादे।।
भारत के लाज......

भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले।
चना ओनहारी के उपजईया मय, भले अंकरी म खवाले।। 
पेट भरईया आवव मैं किसान, भुंखा पेट सोवाले।
भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले। 
भारत के लाज आंव ...........................
कविता के माध्यम से श्री जोशी जी द्वारा जाति धर्म से परे रहने वाले किसान के माध्यम से जागरूकता लाने का प्रयास किया गया है। इसके माध्यम से अन्नदाता किसान को भी चित्रित करने का प्रयास किया है। उल्लेखनीय है कि इस कविता को श्री हुलेश्वर प्रसाद जोशी द्वारा 4थी वाहिनी माना रायपुर में भर्ती ड्यिूटी के दौरान दिनांक 08 12 2012  को लिखा गया था।

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तइहा के गोठ ह पहाए लागिस - श्री हुलेश्वर प्रसाद जोशी की (कविता)

तइहा के गोठ ह पहाए लागिस.....
तइहा के गोठ ह पहाए लागिस
दूधारू गाय के लात ह मिठाए लागिस
शिक्षाकर्मी बहु ह गारी देथे बेटा ल
महतारी ह दरूहा बेटा बर काल पिरोए लागिस

नवा नेवरनिन घरघुसरी के राज हे
सांची के समुंदर मे नाश होही
बिहाए डउकी के बेटा ह रोटी जोहे
अउ सास ससुर देवी देवता के तिरस्कार होही

आगी लगय दुश्चरित्तर बेटा के जवानी म
एक बात आथे शिक्षाकर्मी बहुरानी म
हांथ जोर नवा नेवरनिन घरघुसरी के
महतारी रोवत हे घर दूवारी म

यह कविता सत्य घटना पर आधारित है। वास्तविक कहानी किस जिले की है, किस गांव की है यह सदैव ही छिपे रहेंगे। परन्तु यहां यह उल्लेखनीय है कि इस कविता की रचना वर्ष 2008 में की गई थी, जिसके प्रासंगिकता को ध्यान में रखते हुए पुनः प्रकाशन किया जा रहा है।



















HP Joshi
2008 - Bastar 


बुधवार, मई 20, 2020

कोरोना वायरस के फूल (लेख) - श्री एच. पी. जोशी

कोरोना वायरस और मंगरोहन वाले मुडही के फूल (लेख) - श्री एच. पी. जोशी


सावधान और सुरक्षित रहिए क्योंकि कोरोना वायरस इस तस्वीर में दिख रहे फूल जैसे नग्न आंखों से दिखाई नही देता। दीगर राज्य और विदेशों से आने वाले अथवा कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वाले कोई भी व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित हो सकते हैं, संक्रमित व्यक्ति के हथेली देखकर आप नही जान पाएंगे कि वह संक्रमित है या नहीं। मेरे हथेली में जो कोरोना वायरस जैसे दिख रहा है वह मुडही का फूल है, मुडही को नग्न आंखों से देखा जा सकता है मगर वास्तव में कोरोना वायरस अत्यंत तुच्छ आकार के होने के कारण विशेष वैज्ञानिक तकनीक अर्थात स्पेशल कोरोना टेस्टिंग किट से ही पता चल पाता है और दिख सकता है। इस मुडही को कोई अंधा व्यक्ति भी छूकर जान सकता है कि यह कोई फूल है सायद उन्हें लगे कि यह कोई फल है, मगर आप चाहे कितने ही अच्छे या दिव्य दृष्टि रखते हों आपको कोरोना के वायरस दिखाई नही देंगे, कोरोना वायरस की भविष्यवाणी कोई ज्योतिष भी नहीं कर सकता। 

आपसे अनुरोध है एक ही घर परिवार में निवासरत अपने पारिवारिक सदस्यों के अलावा शेष सभी व्यक्तियों से फिजिकल डिस्टेनसिंग रखें। जब दूसरे किसी स्थान पर या किसी अन्य व्यक्ति से मिलने जाना पड़े या किसी अन्य व्यक्ति से वार्तालाप करना पड़े तो वार्तालाप और घर से बाहर रहने के दौरान नाक और मुह को अच्छे से ढ़कने योग्य मास्क जरूर लगाएं। घर में रहें तब भी समय समय पर साबुन से हाथ धोते रहें जब साबुन से हाथ धोएं तो कम से कम 20 सेकंड तक हाथ को धोते रहें। घर या कार्यालय से बाहर जब साबुन से हाथ धोने का व्यवस्था न मिले तब अल्कोहल बेस्ड सेनेटाइजर से हाथ साफ करते रहें। लिफ्ट के बटन, गेट, संदेहास्पद वस्तुओं अथवा सामग्री इत्यादि को छूने के पहले या बाद में साबुन से हाथ धोएं या सेनेटाइजर लगाएं; घर से बाहर निकलें तो बेहतर होगा सेनेटाइजर की एक छोटी बॉटल लेकर चलें।

यह उसी मुडही का फूल है जिसके तना और हरे डालियों का उपयोग छत्तीसगढी परंपरा में विवाह के दौरान मंगरोहन (लकड़ी का पुतला पुतली) बनाने और मड़वा छाने में किया जाता है। मंगरोहन मंडप के बीच में गड़ाया जाता है। मंगरोहन के सामने ही मिट्टी के 02 करसा में पानी भरकर उसके बाहरी आवरण में गोबर से चित्र बनाकर हल्दी और कुमकुम इत्यादि से रंगे हुए चाँवल से सजाया जाता है इस करसा के ढक्कन में ही तेल के जोत जलाया जाता है। जिसके चारों ओर दूल्हा दुल्हन भांवर घूमते हैं तब विवाह संपन्न होता है। सम्भव है आप इसे अर्थात मुडही को दूसरे किसी नाम से जानते हों।

माफीनामा- मूल रूप से इस लेख का "शीर्षक कोरोना वायरस और मंगरोहन वाले मुडही के फूल है" जो ईमानदारी की बात है परन्तु शोशल मीडिया में हेडिंग आधारित बेईमानी सीखकर मैने अपने लेख का शीर्षक "कोरोना वायरस के फूल" कर दिया है। मैं अपने इस बेईमानी के लिए आप पाठक बंधुओं से माफी चाहता हूं। परन्तु इस माफीनामा से आपको सीखने की भी जरूरत है कि आज अधिकांश वेबपोर्टल में पेज व्यू बढ़ाने अर्थात एडसेन्स अथवा किसी फर्म/कंपनी से विज्ञापन पाने के लिए भ्रामक शीर्षक का प्रयोग किया जाता है, ताकि आप शीर्षक के झांसे में आकर उनके लिंक में जाएं और उन्हें व्यू मिले मगर आपको गोल-मोल भंवर में फंसाकर वापस फेंक दिया जाता है। - एच. पी. जोशी (लेखक)


Written Date : 19/05/2020

रविवार, मई 17, 2020

प्रत्येक मनुष्य का लक्ष्य H3 होनी चाहिए; जानिए H3 क्या है?

प्रत्येक मनुष्य का लक्ष्य H3 होनी चाहिए; जानिए H3 क्या है?

आप अन्यथा न लें, कि मैं H3 का सिद्धांत बना रहा हूँ जो पक्षपात पूर्ण है, स्वयं को हीरो बनने की जुगाड़ है। क्योंकि आपको लग सकता है कि अंग्रेजी के H अक्षर से ही मेरा नाम शुरू होता है, इसलिए मैंने H3 का सिद्धांत प्रतिपादित कर दिया। खैर; मनुष्य के लिए H3 अनिवार्य तत्व है जिसके बिना मनुष्य का मनुष्य होना अधूरा और असंगत ही रहेगा।

H3 क्या है?
H3 मतलब तीन बार H क्रमशः स्वास्थ्य, मानवता और खुशी का प्रतिनिधित्व करता है; जिसमें प्रथम H - Health बेहतर स्वास्थ्य के लिए प्रेरित करता है, दूसरा H - Humanity अर्थात मानवता का द्योतक है जिसके बिना मनुष्य मनुष्य नहीं हो सकता, जबकि तीसरा और अंतिम H - Happiness अर्थात ख़ुशी का प्रतीक है।

स्वास्थ्य (Health); उत्तम स्वास्थ्य मनुष्य ही नहीं बल्कि ब्रम्हांड के सारे जीव जंतुओं के दीर्घायु जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। यदि कोई मनुष्य निरोगी नही है इसका तात्पर्य यह है कि उनका जीवन अत्यंत कठिनाइयों, दुःख और ग्लानि से भरा हुआ होगा; रोगी होने का तात्पर्य यह भी है कि वह अधिकांश प्रतियोगिताओं के लिए अयोग्य हो जाएगा। माता श्यामा देवी कहती थी "अच्छी स्वास्थ्य केवल निरोगी होने के लिए ही नहीं बल्कि बौध्दिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी आवश्यक है।"

मानवता (Humanity); मानवता हर मनुष्य के भीतर होना आवश्यक है। किसी मनुष्य के भीतर मानवता का गुण नही है इसका तात्पर्य यह है कि वह मानव के बजाय अन्य जीव के समान गुणधर्म वाले ही माने जाने योग्य हो जाएगा।

खुशी (Happiness); खुशी मानव जीवन ही नहीं बल्कि अन्य जीव जंतुओं के लिए भी उनके सफल जीवन और संतुष्टि के लिए आवश्यक है।


Image for Health, Humanity and Happiness 
(Tattvam Huleshwar Joshi)


कर्म, कर्मफल और कर्म के लेखा जोखा का सिद्धांत - श्री हुलेश्वर जोशी

कर्म, कर्मफल और कर्म के लेखा जोखा का सिद्धांत - आलेख श्री हुलेश्वर जोशी


कर्म का सिद्धांत क्या है? कर्मफल क्या है? इसे जानने के पहले हमें कर्म को जानना होगा, कि कर्म क्या है? कर्म किसे कहेंगे? कर्म अच्छे हैं या बुरे? इसके लेखा जोखा का क्या सिद्धांत है? कर्म का फल स्वयं के कर्म के अनुसार मिलता है कि हिस्सेदारी वाली होती है? इन सब प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए धरमचंद और करमचंद को जान लेते हैं।

करमचंद और धरमचंद दोनों बचपन के साथी हैं। दोनों का जन्म भी एक ही दिन हुआ है। कद, काठी और देखने में लगभग एक जैसे ही लगते हैं। कोई अजनबी यदि अलग-अलग समय में करमचंद और धरमचंद से मिले तो धोखे में रहेगा कि दोनों व्यक्ति जिनसे वह मिला है एक ही व्यक्ति है कि अलग अलग दो हैं। TWIN CELEBRITY SISTERS CHINKI MINKI की तरह।

करमचंद और धरमचंद दोनों आश्रम में पढ़ते थे तभी उनके गुरुजी ने इनके बीच मितानी करवा दिया। परिवार के बड़ों ने भोजली भी बदवा दिया। इस प्रकार से इनकी अच्छी गाढ़ी दोस्ती हो गई है। दोनों एक दूसरे के घनिष्ठ मित्र हो चुके हैं।

इनकी मित्रता कुछ-कुछ सुदामा के मित्रता से मिलता है। केवल असमानता इस बात की है कि, सुदामा और गोपाल दादीरस का पान नहीं करते हैं जबकि करमचंद और धरमचंद दादीरस के आदी हैं। इनकी मित्रता, मित्र के लिए समर्पण और सम्मान कर्ण से अधिक है। भिन्नता है तो केवल इस बात की कि, कर्ण ने दुर्योधन के इच्छा को अपना धर्म बना लिया है जबकि करमचंद और धरमचंद के मित्रता की आत्मा देशी चेपटी के भीतर बसती है। मानो ये चेपटी उनके लूँगी के गाँठ में स्वयं को गौरवान्वित समझते हों शायद इसी लिए चेपटी को ये मान्यवर अपनी आत्मा समझते हैं।

करमचंद अपने मितान धरमचंद के विवाह समारोह में नृत्य कर रहा था। अचानक बैण्ड वाले ने नागिन DANCE वाला MUSIC बजा दिया। फिर क्या था करमचंद नागिन DANCE करने लगा। बिधुन होकर नाचते नाचते बेहोश भी हो गया। करमचंद के बम में पथरीले सड़क के नुकीले पत्थर चुभ गया है इसके बावजूद वह नाच रहा है। नीचे लूँगी खून से लथपथ हो चुका है। उसके खून से कुछ और लोग भी लथपथ हो चुके हैं। चस्माराम भी खून से भीग चुका है।

दादीरस की दुकान के पास किसी ने चस्माराम को बताया कि उसका कपड़ा खून से भींग चुका है। चस्माराम अपने वस्त्र के भीतर शरीर को CHECK किया तब पता चला कि उन्हें कोई चोट नहीं है। वापस आकर चस्माराम ने BAND बाजा रूकवाया और लोगों को बताया तब पता चला कि करमचंद को चोट लगी है। करमचंद अपने लूँगी और शरीर के खून को देखते ही मूर्छित हो गया।

अब चलो समीक्षा करते हैं। पता लगाने का प्रयास करते हैं कि, करमचंद को क्यों चोट लगी? क्या पिछले जन्म में उसने कोई पाप किया था? क्या उसने किसी के लिए गड्ढे खोदे थे जिसमें वह गिरा है। क्या करमचंद पापी था? क्या करमचंद का नृत्य करना पाप था? क्या करमचंद और धरमचंद में पिछले किसी जन्म में कोई दुश्मनी थी? या कभी करमचंद और धरमचंद की होने वाली पत्नी के बीच कोई पिछले जन्म की दुश्मनी थी?

क्या सड़क बनाने वाले ठेकेदार की गलती थी? क्या सरकार की गलती है जो कच्चे रास्ते को उन्नत कर गिट्टी मुरम का रोड़ बनवा दिया? क्या BAND वाले की गलती है जो उसने नागिन DANCE के लिए MUSIC बजा दिया? क्या धरमचंद की गलती है कि उसने अपने विवाह में BAND लगवाया? क्या धरमचंद के बाप की गलती थी जो उन्होंने धरमचंद का विवाह तय कर दिया? क्या दादीरस का गलती है जिसे करमचंद ने पी रखी है? क्या दादीरस बनाने वाले गनेशुराम की गलती है? क्या धरमचंद के छोटे भाई मतवारीलाल की गलती है जिसने DISTILLED WATER OF DRIED FLOWER JUICE MEANS  MAHUA DARU खरीद लाया और करमचंद को पीने दिया है?

कही ये विधि का विधान तो नहीं है जो ऐसा होना तय ही था। परन्तु तय होने का भी कोई तो कारण अथवा सिद्धांत अवश्य होनी चाहिए। फल की जिम्मेदारी कौन लेगा? किसके या किस-किस के कर्म पर आरोप लगाया जाए जिसके कारण करमचंद अभी मूर्छित है?

उत्तर बिल्कुल समझ और बुद्धि के पकड़ से दूर ही है। हर अनुमान पहले सटीक जान पड़ता है, फिर कुछ ही समय में उत्तर से दशकों प्रकाशवर्ष दूर चले जाते हैं। यही प्रक्रिया अर्थात दूर और निकट का खेल बारम्बार नियमित रूप से पुनरावृत्ति होती है। करमचंद और धरमचंद की कहानी पढ़ने के बाद कर्मफल का जो सटीक उत्तर मिला है उसके अनुसार प्रतीत होता है कि यहाँ FULLY PARTNERSHIP GAME है। कोई अकेला व्यक्ति अथवा उसके पूर्वजन्म के कर्म ही उनके मूर्छा होने का कारण नहीं है। बल्कि प्रश्न के दायरे में आने वाले सभी व्यक्ति और उनके कर्म करमचंद के कष्ट का कारण हैं। संभव है किसी भी कर्म और कर्मफल का अकेला कोई व्यक्ति अथवा संबंधित व्यक्ति और उनके कर्म जिम्मेदार हों। इसलिए करमचंद के मूर्छा के लिए सभी कुछ-कुछ मात्रा में जिम्मेदार हैं; ऐसा मान लेना उचित प्रतीत होता है।

क्या कर्म का खाता होता है? क्या कर्म का एक ही ACCOUNT होता है एक जीवन के लिए। क्या एक जीवन के कर्म का ACCOUNT सैकड़ो लाखों की संख्या में हो सकता है? क्या पति-पत्नी की JOINT ACCOUNT होता है? क्या आपके कर्म के ACCOUNT से आपके निकट या दूर पीढ़ी को कुछ हिस्से मिलेंगे? क्या कर्म का ACCOUNT आपके जन्म जन्माँतर तक चलता रहेगा? कर्म के ACCOUNT अर्थात लेखा जोखा या खाता से संबंधित सैकड़ों प्रश्न उठते हैं। परंतु क्या इन सैकड़ों प्रश्नों का कोई अत्यंत सटीक उत्तर दे सकता है?

उत्तर आता है ‘‘नहीं।’’ नहीं क्यों? क्योंकि यह एक अनुमान है। मानक SOP है। आपका भ्रम मात्र है। सत्य तो क़दापि नहीं है। यदि सत्यता है, तो साक्ष्य भी मिलना चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे आपके YAHOO, HOTMAIL और GMAIL ACCOUNTS का साक्ष्य है। आपके SOCIAL MEDIA ACCOUNTS जैसे INSTAGRAM, TWITTER, BLOGGER, FACEBOOK और TIKTOK के साक्ष्य मिलते हैं। ओह् माफ़ करना TIKTOK भारत में प्रतिबंधित है। ठीक वैसे ही जैसे बैंकों के SAVINGS ACCOUNT, LOAN ACCOUNT, FIXED DEPOSIT, RECURRING DEPOSIT, LIFE INSURANCE और TERM PLAN इत्यादि का ACCOUNT होता है।

कर्म का खाता तो दिखाई ही नहीं देता। इसके साक्ष्य भी नहीं मिलते। तो क्या यह मान लिया जाए कि, कर्म का ACCOUNT नहीं होता? क्या ये मान लें कि कर्म की ACCOUNT जैसी बात कोरी कल्पना है?

मगर अभी भी इसमें थोड़ा संदेह नजर आता है। क्योंकि हम हजारों वर्षों से यह मानते रहे हैं कि, कर्म का ACCOUNT और लेखा जोखा होता है। फिर एक झटके में इन चंद प्रश्नों के झाँसे में आकर अपनी बनी बनाई SOP को खारिज करके अपनी अनुशासन क्यों बदल डालें? क्यों मानने लगें कि कर्म का ACCOUNT नहीं होता? खाता नहीं होता।

समस्या ये है कि, इसे मानने पर भी द्वन्द है। ‘कैसा द्वन्द?’ इसे समझने के पहले हम लगभग एक लाख ईसा साल पूर्व चलते हैं। नजूलनाथ और फजूलनाथ दो सगे भाई हैं। दोनों रतिहारिन की संतान हैं। रतिहारिन रोमसिंग कबीला के कबीला प्रमुख की पत्नी है। जब कबीला प्रमुख रोमसिंग दूसरे कबीलों को अपने कब्जे में लेने के अभियान में चले गये और लंबे बसंत तक वापस नहीं आए तो रतिहारिन को उनकी चिंता होने लगी। वह रोमसिंग की तलाश में निकल पड़ी। कुछ कबीला तक उनके यात्रा के दौरान उनका ख़ूब सम्मान हुआ।

रोमसिंग को खोजते हुए लगभग दो बसंत बीत जाने के बाद, रतिहारिन अपने रक्षकों और अश्व के बिना नदी किनारे वह स्वयं को पाईं। अब वह गर्भवती और भोली हो चुकी है। उन्हें पता नहीं कि कब, कैसे और किसके या किस-किस के योगदान से वह गर्भवती हुई है? वह आसपास के कबीले में गई तो किसी ने उसे बताया कि वह कबीला प्रमुख रोमसिंग की पत्नी है।

कुछ ही दिनों में रोमसिंग को भी इसकी सूचना मिल गई। वे रतिहारिन को अपने राज्य ले आये। अब शोध शुरू हुआ कि रतिहारिन कैसे गर्भवती हुई। सबके सब जानने में असफल रहे। तब एक दरबारी मंत्री ने कहा इसे प्रकृति का संतान मान लेना चाहिए अथवा शक्तिमान का आशीर्वाद मान लेना चाहिए। ठीक ऐसा ही हुआ। क्योंकि दिमाग खपाने और परिणाम नहीं मिलने की संभावना को देखते हुए दरबारी मंत्री की बात मान लेना ही बेहतर विकल्प था। वैसे आपने भी गोस्वामी तुलसीदास द्वारा श्री रामचरितमानस में लिखी चौपाई को सुना होगा जिसमें उन्होंने कहा है “समरथ को नहीं दोष गोसाईं, रवि सुरसरि पावक की नाईं।”

कुछ दिनों में रतिहारिन ने जुड़वा संतान को जन्म दिया। उनका नाम रखा गया, नजूलनाथ और फजूलनाथ। दोनों अत्यंत शक्तिशाली और अपने समय में विख्यात कबीला प्रमुख हुये। नजूलनाथ और फजूलनाथ के जन्म का रहस्य किसी को पता नहीं। स्वयं रतिहारिन को भी नहीं। क्योंकि दीर्घकाल तक वह बेसुध रही।

रतिहारिन स्मरण शक्ति खो चुकी है। मगर कोई शक्ति तो लगा है। कोई क्रिया तो हुई है जिसके कारण नजूलनाथ और फजूलनाथ का जन्म हुआ है। कोई तो ACCOUNT खोला होगा। प्राकृतिक संयोग के बिना रतिहारिन का गर्भवती होना संभव ही नहीं है।

रोमसिंह के पास विवेचना का कोई विकल्प नहीं था इसका मतलब ये नहीं कि यह पूरा मामला समझ से परे है। बल्कि स्पष्ट है। चूँकि रोमसिंग, नजूलनाथ और फजूलनाथ ही नहीं बल्कि उनके आगे के संतान भी अत्यंत शक्तिशाली हुए इसलिए किसी में साहस नहीं था कि कोई यह कहे कि नजूलनाथ और फजूलनाथ का जन्म ठीक उनके जैसे ही सामान्य संयोग से हुआ है। अर्थात रतिहारिन का बलात्कार हुआ है।

हालाँकि कर्म, कर्म के सिद्धांतों और उससे जुड़े इन प्रश्नों का सटीक और सर्वमान्य जवाब अभी तक किसी के पास नहीं है। अतः जब तक आप साहस और बुद्धि से काम नहीं लेंगे; तब तक आपको मानना ही पड़ेगा कि नजूलनाथ और फजूलनाथ प्रकृति की संतान है यानि शक्तिमान के आशीर्वाद से रतिहारिन गर्भवती हुई है।

अंत में यह साफ कर देना चाहता हूँ कि यह कहानी कर्म, कर्म के सिद्धांत, कर्म का खाता जैसे महत्वपूर्ण प्रश्नों के सटीक उत्तर देने में असफल है। आप स्वयं को अँधेरे से उजाले की ओर ले जाने का प्रयास करेंगे तो संभव है समुद्र तट के नन्हे कछुआ जैसे भ्रम में पड़कर चंद्रमा की रोशनी समझकर RESTAURANT में लगे LED LIGHTS के पास पहुँच जाएँ। इसलिए बुद्ध की बात मानिये, जो उन्होंने कहा है “अप्प दीपो भव”


यदि
दूसरे किसी के झाँसे में आएँगे तो आप फँसे हुए रह जाएँगे। आप मनुष्य हैं। सोचने, समझने और निष्कर्ष तक पहुँचने की शक्ति के साथ आपका जन्म हुआ है। इसलिए समीक्षा करिये और ख़ुद ही पता लगाईये कि क्या कर्म के लेखा-जोखा का कोई सिद्धांत होता है? जिसे हमारे कथित धर्म और धार्मिक नेताओं द्वारा प्रमाणित करने का प्रयास किया जाता है। आप चाहें तो नजूलनाथ और फजूलनाथ को शक्तिमान के आशीर्वाद से जन्मे मानकर ईश्वर मान लें या फिर प्राकृतिक संयोग से जन्मे जानकर रतिहारिन के साथ हुए घटनाओं का अनुमान लगा लें। जब आप रतिहारिन के साथ हुए घटना का समीक्षा करेंगे तो कुछ लोग आपको कहेंगे कि आप अधर्मी हैं, जो शक्तिमान पर प्रश्न कर रहे हैं। अधार्मिक कहलाने के भय से बेवकूफ बने रहना है तो बिलकुल बेवकूफ बने रहिये, अपने बौद्धिक क्षमताओं का इस्तेमाल मत करिये। फिर भी मैं तो यही कहूँगा कि नजूलनाथ और फजूलनाथ का जन्म भी प्राकृतिक संयोग ये ही हुआ है। चाहे वो दोनों रतिहारिन और उनके प्रेमी के बीच प्रेम के परिणाम हों या क्रुरतापूर्ण या सामूहिक बालात्कार के।

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उल्लेखनीय है कि यह लेख श्री हुलेश्वर जोशी के ग्रंथ "अंगूठाछाप लेखक" - (अभिज्ञान लेखक के बईसुरहा दर्शन) का अंश है।

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