गवंइहा ददा अउ शहरिया बेटा के संवाद (गोठ-बात) - श्री एच पी जोशी
गवंईहा ददा ले अबड डिमाण्ड करथे
शहरिया टूरा ह हर बात म रिसाथे
ददा घलो गुसियाके अपन बचपन के बात बताथे
गवंईहा ददा ले अबड डिमाण्ड करथे
शहरिया टूरा ह हर बात म रिसाथे
ददा घलो गुसियाके अपन बचपन के बात बताथे
मेनीपोको पेंट पहिनथस फेर
आनि-बानि के गोठियाथस
झूठ चलाकी हमर पुरखा नई जानिस,
टूरा बढ़-चढ़ के तंय गुठियाथस
सट्टा जुआ कभु खेलेन नही
बेटा, जबर शर्त तंय लगाथस
बिगरे के रसदा म झइन चल बेटा
इहि बात म मोला तंय रोवाथस
गोल्फ हाकी कभु खेलेंव नहीं
गिल्ली डंडा खेलईया तो आंव
कुकुर बिलई कभु चराएंव नहीं
मैं भैसी पडरू के चरईया तो आंव
सांप सीढ़ी अउ लूडो खेलेंव नहीं
थप्पा-भटकउला खेलईया तो आंव
अमली बीजा के तिरी पासा
अउ कौड़ी खेलइया तो आंव
उद्यान-ओपन जीम काबर जाबो
बर-पिपर तरी खेलाईया तो आंव
अगास झूला कभू झुलेंव नही त का भईगे
रेहचुल-ढेलुआ झुलैया तो आंव
स्विमिंग पूल के नईहे जरूरत
नरवा नदिया म तंउडईया तो आव
बोटिंग नई करेंव त का भईगे
भैंसा ऊपर चढ के मजा लुटईया तो आंव
पागा गिराऊ बिल्डिंग देखेंव नहीं
खदर म रहैया तो आव
फटफटी चलाएंव नहीं त का भईगे
पड़वा ऊपर चढ़ैया तो आव
पनीर कोफ्ता कभू चिखेंव नहीं
नुन बासी के खवईया तो आंव
अम्मटहा रमकेलिया अऊ जिमी कानदा
आलू भाटा के चीखना खवईया तो आंव
मेगी पिज्जा कभु खाएंव नहीं
चिला रोटी खवईया तो आव
सीसी रोड म रेंगेव नहीं, त का भईगे
धरसा रसदा के रेंगैया तो आव
मार्निंग वाक कभु जावन नही
मुही पार देखईया तो आंव
जीम-सीम कभु नई गेन त का भईगे
पसीना गिराके कमईया-खवईया तो आन
मोरो गोठ ल मान ले बेटा
होसियारी अभी झइन मार
हेलीकाप्टर घलो बिसाबो एक दिन
अभी नई लेवन पुराना कार
सरकारी स्कूल म पढे बर जाबो
अउ देश के मान बढ़ाबो
गुगल-फेसबुक के नौकर नई बनन
ऐकर ले बडे कम्पनी बनाबो
नोट- इस कविता के रचनाकार श्री हुलेश्वर जोशी पुलिस विभाग में प्रधान आरक्षक के पद पर पदस्थ हैं। श्री जोशी शिक्षा शास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त हैं जो वर्तमान में इग्नु से मानव अधिकार में कोर्स कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि यह चित्र किसी भी प्रकार से बालकों के उपर अपराध और अत्याचार का समर्थन नही करता है मनोरंजनात्मक दृष्टिकोण से पिता-पूत्र का नाठकीय सेल्फी है।
बहुत ही मार्मिक चिंतनीय व विचारणीय रचना।
जवाब देंहटाएंबधाई हो सर जी।