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शुक्रवार, नवंबर 29, 2019

पर्यावरण संरक्षण, ईश्वर और मूल धर्म पर Durgamya और Tattvam के मध्य संवाद - HP Joshi

पर्यावरण संरक्षण, ईश्वर और मूल धर्म पर Durgamya और Tattvam के मध्य संवाद - HP Joshi

वर्तमान परिवेश के अनुरूप पर्यावरण संरक्षण, ईश्वर और धर्म को नए दिशा देने की अत्यंत आवश्यकता है इसलिए आज हम दो नन्हें बच्चों के संवाद के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं इस संवाद का उद्देश्य पूर्णतः लोकहित और कल्याण को समर्पित है यह लेख धर्म निरपेक्षता का समर्थन करता है और धर्म के आधार पर आपसी मतभेद को मिटाने का प्रयास करता है। 

आइए हम Durgamya और Tattvam के मध्य हुए काल्पनिक संवाद को जानने का प्रयास करते हैं। वास्तव में ये दोनों नन्हे पात्र Durgamya पीपी2 की स्टूडेंट्स है और Tattvam अभी 2वर्ष का अबोध बालक है।

Durgamya: सूर्य न होता तो ?? यदि सूर्य न होता, यदि पृथ्वी न होती, यदि चंद्रमा न होता, यदि आक्सीजन न होता, यदि कार्बन डाइऑक्साइड न होता तो और यदि पानी न होती तो क्या आप होते??
क्या इनमे से एक भी नहीं होगा तो आप जीवित रहने में सक्षम होंगे?

Tattvam: नहीं। क्या धर्म नहीं होता तो आप जीवित रहने में सक्षम होंगे?

Durgamya: हां, कथित धर्म की हमें कोई आवश्यकता नहीं है। इन कथित प्रचलित धर्म के बिना भी हम जी सकते हैं जैसे मनुष्य के अलावा सभी प्राणी जीवित हैं।

Tattvam: तो हम धर्म के नाम पर इतना क्यों उलझे हैं? आपस में लड़ क्यों रहे हैं? हिंसा क्यों कर रहे हैं? आपसी भाईचारे को समाप्त क्यों कर चुके हैं?

Durgamya: ये सब धार्मिक नेताओं के मज़े के लिए है उनके मनोरंजन के लिए है। वे आपको इस पचड़े में फंसाकर राज करना चाहते हैं और आपको मानसिक रूप से गुलाम ही रखना चाहते हैं। हम उनके झांसे में आकर फंसे हुए हैं यही वास्तविकता है।

Tattvam: क्या हम सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी के लिए, उसके सुरक्षा के लिए कुछ कर सकते हैं?

Durgamya: वास्तव में सूर्य और चंद्रमा हमारे ईश्वर है, भगवान है, परमात्मा है और यही श्रेष्ठ देवता है। इनके लिए कुछ न करो तब भी चलेगा, क्योंकि कि ईश्वर, भगवान, परमात्मा या देवता आपके पूजा का मोहताज नहीं, यदि कोई स्वयं को पूजने को कहता है तो कुछ तो गड़बड़ है।
आपको अपने जन्मभूमि के लिए अपनी पृथ्वी के लिए पृथ्वी में विद्यमान जल की स्वच्छता के लिए, आक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड की सही मात्रा में उपलब्धता के लिए, इनके सुरक्षा के लिए कार्य करने की जरूरत है क्योंकि ये हमारे लिए अत्यंत उपयोगी ही नहीं जीवन के लिए निहायत जरूरी है, इसके बिना एक पल भी जीवन संभव नहीं है।

Tattvam: दीदी तो बताओ, मैं पृथ्वी, आक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड और जल के संरक्षण के लिए क्या करूं? मुझे क्या करना चाहिए?

Durgamya: इसके लिए भी आपको बहुत अधिक कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आप अधिकाधिक वृक्षारोपण करें, भोजन में फलों के प्रयोग को बढ़ाएं, ताकि आपको आक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड और आपके और आपके प्रकृति के लिए बराबर मिलता रहेगा। जब आप अधिक से अधिक वृक्ष लगाएंगे तो जलस्तर बढ़ेगी, नदिया नलों और तालाबों में पानी होगी, आप वर्षा के जल को बांध, चेकडैम और हार्वेस्टिंग के माध्यम से भी रोककर जल स्तर बढ़ा सकते हैं ताकि आपके आने वाली पीढ़ियों को पानी की किल्लत न झेलनी पड़े।

पृथ्वी के संरक्षण के लिए केवल एक काम करना है सोलर एनर्जी के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने की जरूरत है और भूगर्भ के भीतर से निकलने वाले कोयले इत्यादि निकालकर जमीन के भीतर को खोखली होने से बचाओ।

पर्यावरण में वायु के स्वच्छता के लिए जितने भी प्रदूषण कारक पदार्थ हैं जैसे डीजल, पेट्रोल, केरोसिन, लकड़ी, कचरे और फैक्ट्री से निकालने वाले खराब सामग्री उन्हें मत जलाइए, पदार्थ के प्रकृति के अनुसार कचरे का उचित प्रबंधन कीजिए।

Tattvam: दीदी, क्या जिन्हें हमें हमारा मौजूदा धर्म ईश्वर और भगवान कहता है उनकी पूजा करने से स्वर्ग मिल सकता है?

Durgamya: गजब के बेवकूफ बने हो Tattvam; ऐसा कुछ नहीं है। मगर हां यदि तुम आक्सीजन और पानी के लिए, इसके बचत के लिए इनकी पूजा अर्थात संरक्षण के लिए वृक्षारोपण नहीं करोगे तो अवश्य ही नर्क में होगे।

मेरा तात्पर्य भौतिक स्वर्ग से है उस काल्पनिक स्वर्ग नर्क के मूर्खता पूर्ण तर्क से नहीं। स्वस्थ जीवन, स्वच्छ वातावरण और भाईचारे व आत्मीयता पूर्ण सामाजिक सद्भाव वाले समाज, गांव और शहर से है इसे ही मैं स्वर्ग कहूंगी। नर्क के लिए ठीक इसके शर्त को उल्टे पलट दीजिए आपको नर्क मिल जाएगा, अर्थात जहां पीने को साफ पानी न मिले, जीने के शुद्ध आक्सीजन न मिले, खाने को अच्छे भोजन न मिले और रहने के लिए अच्छा सद्भाव पूर्ण समाज न मिले, और शोरगुल से परे शांतिपूर्ण निवास स्थान न मिले तो जान लेना यही नर्क है। समाज में हिंसा व्याप्त हो।

Tattvam: दीदी, मैं धर्म किसे समझूं?

Durgamya: सच्चा धर्म आप सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आक्सीजन के प्रकृति को ही मानों, जैसे ये सभी परोपकार के लिए किसी से भेद नहीं करती ऐसे ही किसी भी जीव जंतु से भेद नहीं करना ही धर्म है।

यह काल्पनिक संवाद समाजिक जागरूकता पर आधारित एक लेख है, इसके माध्यम से लेखक देशवासियों ही नही वरन् समस्त मानव समाज से अपील करता है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आएं, जाति/धर्म के नाम पर मानव-मानव में भेद को त्यागें और शांति और शौहार्द्रपूर्ण समाज की स्थापना के लिए आगे आएं। क्योंकि स्वच्छ जल, हवा और प्रदुषण मुक्त पर्यावरण हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है।

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