यह कहानी छुआछूत और उच्च नीच की एक बेजुबान कहानी है, जो समाज में व्याप्त बुराइयों को रंगीन नहीं बल्कि पारदर्शी चश्मे से देखने को प्रेरित करती है।
बीती रात से मैं बहुत दुखी हूं क्यों कि मेरी पत्नी अपने मायके में चल रही सामाजिक व्यवस्था के बारे में पुनः बताई मुझे जानकारी दी, इसीलिए ये लेख लिख रहा हूं, आपसे अनुरोध है छत्तीसगढ़ी व्यंग सहित देश के ग्रामीण सामाजिक स्थिति को जानने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
कहानी :
ढोलू राम कहिथे : सगा, जगमोहन के डौकी ह काली नल म पानी भरत राहत, ओतके समय सुकलू के टुरा ह नल ल छु दिस, त का गजब होगे??? जगमोहन के डौकी ह जम्मो पानी ल उलद दिस अरु सुकलु के टूरा ल गारी दे लागिस........
बंचू दास बताथे : तय आज तक नई जाने मितान, उखर समाज के मुरुख औरत मन आज भी छुआछूत मानथे, फेर मज़ा के बात हे उखरेच पुरस मन जूठा बीड़ी सिगरेट पिथे त छुआछूत नई मानय।
ढोलू राम कहिथे : सुकलु मन तो शाकाहारी आय, जबकि जगमोहन मन सरे मछरी घालो ल नई बचावय, उच्च नीच कौन???
बंचू दास ढोलू राम ल समझाइए : मितान तय उच्च नीच म झन पर, कोनो उच्च नीच नई होवे, ये सब बिकृत मानसिकता भर तो आय।
Village - XXXXXX, जिला मुंगेली, छत्तीसगढ़ जाकर देखें, आज भी छुआछूत हो रहा है। जब कुछ समाज की महिलाएं नल में पानी भरती हैं तो दूसरे समाज के लोगों को नल नहीं छूना चाहिए, यदि छु देंगे तो वे तब तक पानी को फेकते रहेंगे, तब तक वे अपने बर्तन को धोते रहेंगे तब तक आप न समझ जाएं या जब तक आप भडुआ बेटखया न हो जाएं अथवा आपकी चुरी मुर्दा न निकल जाए। ये परम्परा आज भी छत्तीसगढ़ के समाज में विद्यमान है। ये सुनकर आप कदापि विचलित मत होना क्योंकि छत्तीसगढ़ ही नहीं वरन पूरे देश के गावों का यही हाल है, हम बोलते हैं कि छुआछूत समाप्त हो गया मगर सबके भीतर यह विद्यमान है, आज भी लोग उच्च नीच के मानसिकता से ग्रसित हैं। सायद वो दिन बहुत देर से ही आएगी जब सभी मानव समाज आपस में भाईचारा और प्रेम से रहना सीख जाएगे। पाठकों से अनुरोध है ऐसी व्यवस्था के खिलाफ लडकर आगे आएं, ऐसी मानसिकता के खिलाफ संवैधानिक तरीके से लडाई लडने की जरूरत है, एक बार लडाई शुरू करके देखिए अच्छा लगेगा।
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