ब्रह्माजी से संवाद : - HP Joshi
एक व्यक्ति से बात हुई बोले इतना गहरा और सटीक ज्ञान आपको कैसे हुआ ?
मैंने कहा - ब्रम्हा जी से कुछ दिन पहले मेरी संवाद हुई थी। महोदय इतना सुनते ही बौखला गए, बोले ब्रम्हा जी पुराने दिनों की बातें है अब वे नहीं है। तुम झूठ बोल रहे हो, तुम झूठे हो। अगली बार ऐसी अफवाह लेकर मेरे पास मत आना। मैंने कहा आप क्षेत्र के प्रमुख मंदिर के पुजारी हैं, आपको ब्रम्हा में विश्वास नहीं? उन्होंने कहा तुम यहां से चले जाओ.... वरना अच्छा नहीं होगा।
मैंने कुछ परिचित लोगों, सहकर्मियों और दोस्तो से भी ब्रम्हा जी संवाद के बारे में बताया, अधिकांश लोगों ने मान लिया कि "मेरा तर्क सही है, परन्तु उन्होंने ब्रम्हा जी से संवाद को असत्य घोषित कर दिया।" कुछ लोगों को मेरे बातों में विश्वास हो गया तो कुछ मुझे ढोंगी कहने लगे थे।
एक दिन मैंने अपने दादा जी से बात करी, उन्हें बताया कि दादाजी, कुछ दिन पहले ब्रम्हा जी मेरे पास आए थे, उनसे मेरी लंबी चर्चा हुई है। उन्होंने कहा है "आप सभी मनुष्य ही नहीं वरन् सभी जीव मुझ ब्रम्हा के ही संतान हो, कोई पराया नहीं, सभी सगे भाई - बहन हो। यह तो सृष्टि के संचालन के कारण, तुम केवल इस जन्म में अमुक (मेरे पिता जी का नाम लेकर बोले) का पुत्र हो, अन्यथा अरबों खरबों जन्मों से मेरे पुत्र ही हो, ऐसे ही सभी जीव जंतु भी मेरे संतान हैं अर्थात आप सभी भाई - बहन हो। कुछ झूठे और पापी लोग, इस सत्य को जानते हुए भी अपने स्वार्थ से प्रभावित होकर, झूठी कहानियां सुना सुना कर मुझे बदनाम कर दिया है। जिस प्रकार से आपके माता पिता आप भाई बहनों में कोई भेद नहीं रखते, उसी प्रकार से मै स्वयं प्रकृति अर्थात ब्रम्हा किसी से भेद नहीं करता। मै किसी मनुष्य से पूजन का अभिलाषा नहीं रखता, मैं आपका पिता हूं, आप अपने इस जन्म के पिता की भांति ही, व्यवहार करें, मै प्रकृति हूं, मै ही ब्रम्हा हूं। जब प्रकृति नहीं होगी, तो आप नहीं होंगे, मानव समाज नहीं होगी, धर्म नहीं होगा, जीव जंतु नहीं होंगे। इसलिएआप धार्मिक उन्हें जानना जो प्रकृति के पूजक हों, धार्मिक होने के लिए आपके समाज या तथाकथित धर्म का अनुयाई होना आवश्यक नहीं। चाहे मनुष्य कोई भी देश काल अथवा जाति, धर्म का हो उनके लिए प्रकृति की संरक्षण आवश्यक है। प्रकृति ही देवता है, प्रकृति पूजा का प्रेमी नहीं है।परन्तु समस्त जीव को उनका आदर करना चाहिए, उसके प्रति सम्मान का भाव होनी चाहिए, प्रकृति ही नहीं, वरन् वे सभी जीव जंतु जो आपको देते हैं वे देवता हैं। इत्यादि ........." इस संबंध में अमुक अमुक (कुछ मंदिरों के पुजारियों का नाम लेकर) से बात करी वे इसे स्वीकारने को तैयार नहीं हैं। मेरे दादा जी को समझने में देर नहीं लगी, उन्होंने झट से एक सुझाव दिया कि ब्रम्हा जी से मिले ज्ञान को एक वाक्य में समेट लो, और उसका प्रचार करो, जब कोई इसपर विचार करने को तैयार रहे तभी उन्हें आगे विस्तार से बताना, संभव है जो मूर्ख होंगे उन्हें छोड़कर आपके वाक्य को सभी मानने लगेंगे, कुछ अपने जीवन में शामिल भी करेंगे।
मैंने निर्देश प्राप्त कर एक वाक्य बनाने की जुगत करता रहा, अंत में एक वाक्य "जम्मो जीव के भाई बराबर" अर्थात "सभी जीव भाई - बहन के समान हैं" बताने में सफल हो गया हूं।
(HP Joshi)
Atal Nagar, Raipur