दूनिया का सबसे सर्वोच्च ज्ञान ’’मनखे-मनखे एक समान’’ का संदेश देने वाले परमपुज्यनीय गुरू घासीदास बाबा जी का जन्म 18 दिसम्बर सन् 1756 में ग्राम गिरौदपुरी, जिला रायपुर (वर्तमान जिला बलौदाबाजार) में हुआ था। उनके संदेशों एवं जनजागरूकता का ही परिणाम है कि आज मानव समुदाय यह स्वीकारने लगा है कि सभी मनुष्य एक समान हैं, कोई उच्च अथवा कोई नीच नही है, उनके जनआंदोलनों के प्रभाव से ही आज देश का बडा वर्ग शोषित होने से बच पाया है। गुरू घासीदास के जन्म के पूर्व मानव-मानव के बीच केवल असमानता, शोषण और अत्याचार जैसे ही संबंध थे।
गुरू घासीदास के जन्मदिवस को देशवासी गुरू घासीदास जयंति के रूप में बनाते हैं। हम संत समाज से आग्रह करते है कि संत समाज इस आयोजन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले। संतों ज्ञातव्य हो कि गुरू घासीदास की जयंती प्रत्येक वर्ष 18 दिसम्बर से प्रायः 31 दिसम्बर तक लगातार ही मनाया जाता है। कतिपय मामलों में इसके बाद भी लोग अपने आस्था के अनुरूप जयंति मनाते रहते है। इस संबंध में कुछ विशेष सुझाव मैं संत समाज शेयर करना चाहता हूँ:-
1 समाज द्वारा आयोजित जयंती कार्यक्रम में क्रमशः पदयात्रा, चैकपूजा, ध्वजारोहण, पंथी नृत्य, भंडारा व प्रसाद वितरण व रात्रिकाल में सतनाम भजन/सतनाम प्रवचन अथवा गुरु बाबा के जीवन पर आधारित लीला ही कराया जावे। किसी भी प्रकार से नाचा - गम्मत या सांस्कृतिक कार्यक्रम के माध्यम से सतनामी संस्कृति को भ्रष्ट न किया जावे न ही अनैतिक नृत्य व गान कराया जावे। ऐसा करना पूर्णतः निंदनीय व गुरु बाबा का अपमान है।’
2 समय समय पर साहू, यादव, मरार व गोंड़ समाज के मित्रों द्वारा आपत्ति दर्ज कराया गया है कि सतनामी संतों द्वारा बाबा जी पर एकाधिकार जमाते हुए हमें बाबाजी के जयंती में आमंत्रित नही किया जाता है न जयंती कराने के सम्बन्ध में आयोजित बैठक में बुलाया जाता है और न तो जयंती कार्यक्रम कराने पर योगदान (चंदा, इत्यादि) लिया जाता। बाबा जी तो लोककल्याणकारी हैं उनकी पूजा समस्त मानव समाज के द्वारा की जाती है, इसलिए कुछ लोग बिना पूछे ही जयंती कार्यक्रम में भाग लेकर बाबा जी का पूजन करते हैं तो कुछ बाबा जी के आशीष नही ले पाते और समाज में यह भ्रांति भी फॅल रही है कि गुरू घासीदासबाबा केवल सतनामियों के गुरू है, इसलिए इस संबंध में अमल करने की जरूरत है।
इसलिए संत समाज से निवेदन है कि बाबा जी के जयंती पर कमसेकम उपरोक्त समाज को जरूर शामिल करें। बाबाजी के पूजा करने का सबको अधिकार है, न कि केवल सतनामी को। ’यदि हम नेता, मंत्री व कुछ प्रभावशाली लोगो को आमंत्रित करते हैं तो उनके समाज के सभी लोगो को क्यों नही? मनखे मनखे एक समान’
ऐसे लोगों को किसी भी शर्त में समाजिक आयोजन में माईक न दिया जावे, जो सतनामी समाज त्याग दिए हों। वे सतनामियों को भड़काकर धर्मपरिवर्तन कराने और दीगर समाज से लड़ाने का ही प्रयास करते हैं।
हुलेश्वर जोशी
कार्यकारिणी सदस्य,
सतनामी एवम सतनाम धर्म विकास परिषद्,
रायपुर (छत्तीसगढ़)