"मनखे-मनखे एक समान" से परिचित हुए बिना कोई भी मानव पूर्णतः मानव नही हो सकता।
"मनखे-मनखे एक समान" उन सभी कुटिल सिद्धांतों के अस्तित्व का अंतिम निदान है जो मानव को मानव से ऊंचनीच होने का कपोल कल्पित झूठा प्रमाण प्रस्तुत करने का षड्यंत्र करती है।
"मनखे-मनखे एक समान" का सिद्धांत छुआछूत, जातिवाद, ऊंचनीच, धार्मिक संघर्ष, के साथ ही झूठे धार्मिक सिद्धांतो के लिए ब्रम्हास्त्र है।
मानव जीवन का वास्तविक सिद्धांत क्या है ? इसे जानने के लिए सहस्त्रों सिद्धांतों का ज्ञान आवश्यक नही। इस संबंध में सतनाम पंथ/धर्म के पुनरसंस्थापक गुरु घासीदास बाबा के एक वाणी "मनखे-मनखे एक समान" को जान लेना पर्याप्त है।
"मनखे-मनखे एक समान" एक पंथ मात्र के लिए गुरुवाणी नही वरन, मानव समुदाय का वास्तविक सिद्धांत है। जो छुआछूत, जातिवाद, ऊंचनीच, धार्मिक संघर्ष, के साथ ही झूठे धार्मिक सिद्धांतो के लिए ब्रम्हास्त्र है।
यह गुरुवाणी उन सभी कुटिल सिद्धांतों के अस्तित्व का अंतिम निदान है जो मानव को मानव से ऊंचनीच होने का कपोल कल्पित झूठा प्रमाण प्रस्तुत करने का षड्यंत्र करती है।
"मनखे-मनखे एक समान" का सिद्धांत अर्थात "मानव-मानव एक समान" अथवा "सभी मनुष्य समान है" को केवल एक ही पंथ/धर्म तक सीमित रखना, समस्त संसार के लिए हानिकारक है। इस सर्वोच्च सत्य को जानने का अधिकार केवल समूचे धरती में निवासरत मनुष्य ही नही वरन परग्रहियों का भी है।
विद्वानों का मानना है कि "मनखे-मनखे एक समान" से परिचित हुए बिना कोई भी मानव पूर्णतः मानव नही हो सकता।
हुलेश्वर जोशी
नया रायपुर, छत्तीसगढ़