प्रेम व परिणय (वैवाहिक) संबंधों को जाति/धर्म के आधार पर सीमित रखना अनुचित व अमानवीय
मानव समाज में प्रेम व परिणय (वैवाहिक) संबंधों को जाति/धर्म के आधार पर सीमित रखना अनुचित व अमानवीय है। ऐसे संबंधों को बंधनमुक्त रखना चाहिए क्योंकि सभी मनुष्य में आत्मा होती है जो समान रूप से परमात्मा के अंश हैं।
प्रकृति किसी भी मनुष्य से उनके जाति/धर्म के नाम पर भेद नही करती, प्रकृति के सिद्धांत को ही ईश्वर का सिद्धान्त माना जाता है। प्रकृति के सिद्धांत के विपरित सारे नियम व्यर्थ, आडम्बर व झूठा है।
मनखे-मनखे एक समान - Guru Ghasi Das
सारे ब्रम्हाण्ड में माता के अलावा कोई ईश्वर नही - MR Joshi
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जम्मो जीव हे भाई बरोबर - HP Joshi