आओ एकरूपता लायें
हम सब भारतीय हैं हमें यह चाहिये कि हममें किसी भी प्रकार की भेद न हो और हम एकरूप हों जिस प्रकार से हम विद्यालयके समस्त विद्यार्थीयों को देखते हैं तो हम स्वयं के पुत्र-पुत्री को पहचान नहीं पाते सब बालकमें हमें अपना बालक दिखाई देता है हम जब उनके बहुत करीब जाते है तब ज्ञात होता है कि यह हमारे पुत्र-पुत्रीके समान है परन्तु क्षणभर बाद ही हम उसे अपना माननें से इनकार कर देते हैं, जितनें बार जितनें विद्यार्थी को देखते हैं, हम उतनें बार महसुस करतें हैं-कि वह हमारा है और हम उनके हैं। फिर भी हम उन्हें अपना मानते नही जबकि ये विद्यार्थी हमें गुरू की तरह बार बार सिखाये जा रहे हैं हम इतनें मुढ़ कैसे हुए कि सिखानें पर भी नहीं सिखते। मैं चाहता हुं कि हम इसी भाव को सीखें और इसी भाव को अंतर्मन में स्थायी कर लें ताकि हम एकरूपता के कारण एकदूसरे में इसप्रकार समां जायें कि वह हमारा है, हम उनके हैं, कोई भी पराया नही है फिर जीवन जीनें में जो आनन्द मिलेगी वह स्वर्ग के समस्त सुखों से श्रेष्ठ होगी और देखना कि फिर से भगवान पृथ्वी में जन्म लेनें को तड़पेंगे जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को तड़पता है, माॅ अपनी बालक को तड़पती है और मृत्यु सैय्या पर सोया अभिलाषी जीवन को तड़पता है।
अतः मै आप सबसे निवेदन करता हुॅ कि आओ हम सब मानव समुदाय में एकरूपता के भाव का सृजन करें, आत्मसात करें, एकरूप होकर सुर्य में किरन और जीवन में आत्मा की तरह विलीन हो जाएॅ, अविभाज्य हो जायें।
आचार्य त्रिभुवन जोशी