सत्य (Truth) : सत्य जिसे आँखो से देखा जा सके एवं जिसके रंग-रुप-गंध आदि को महसुस एवं उनके बनावट के साथ संरचनाओ को प्रमाणित किया जा सके उसे सत्य कहते हैं कुछ लोग इसी सत्य को सही जानकारी नही होने के कारण "सत" मानते है।
तत्व (Element) : तत्व अर्थात तत हमेशा दो या दो से अधिक अवययों से बना होता है, इसका स्वयं का कोई अस्तित्व नही होता, इसमें हमेशा संघटन एवं विघटन की संभवनायें विद्यमान रहती है, इसी का परिणाम है कि आज वैज्ञानिक जगत अनेको प्रकार के मशीनी उपकरण मानव के सुख-सुविधा हेतु तैयार कर पा रहे हैं।
सत (Sat) : सत वह है जिसके बदौलत सत्य और तत्व का वजूद है अर्थात जिस अदृश्य शक्ति के बदौलत तत्व का निर्माण हुआ है उसे धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में सत कहा जाता है, इसी सत के बारे में गुरू घासीदास बाबाजी ने मानव समाज को अवगत कराया । सत को नही बनाया जा सकता है, नही उसे आँखो से एवं मशीनी उपकरणो से देखा जा सकता है, इसी को निराकार, सत पुरूषपिता सतनाम कहते हैं।
मनुष्य का जहां तर्क-विश्लेषण समाप्त होता है वही से सत का उदय होता है। गुरूजी ने "सत्य और तत्व अर्थात सत और तत" का भी प्रमाणिकता के साथ जानकारी दिये जो मानव जीवन जीने का शैली है, जिसका स्पष्ट अवलोकन गुरूजी के संदेशो में देखा जा सकता है।
जइसन खाहू अन्न, ओइसन होही मन।जइसन पीहू पानी, ओइसन बोलिहौ बानी।।
सत्य और तत्व के बारे में बहुतायत लोग जानते हैं जबकि "सत" के बारे मे गिने चुने ही जानते हैं जिसमें परमपूज्य गुरू घासीदास बाबाजी का नाम अग्रणी है।
विष्णु बंजारे सतनामी
संस्थापक एवं संरक्षक
"सतनामी एवं सतनाम धर्म विकाश परिषद"