विधवाओं के लिए मौजूदा समाजिक नियम अमानवीय और अत्याचार है जो उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन करती है - HP Joshi
समाजिक नियमों के नाम पर पति के देहांत होने पर रोती बिलखती महिला को पहले जबरदस्ती अच्छे कपडे पहनाया जाता है सोलह श्रृंगार किया जाता है और फिर कतार में तलाब अथवा नदी ले जाकर उनके सारे श्रृंगार को हमेशा हमेशा के लिए जबरदस्ती और अमानवीय तरीके से छीन लिया जाता है। उसके बाद भी हमारा जी नही भरता और जीवनभर के लिए छद्म समाजिक नियम के नाम पर सैकडों प्रतिबंध लगा देते हैं जिसपर उसका पूरा अधिकार होता है।
कतिपय मामलों में विधवा पुनर्विवाह के प्रकरण को छोडकर, संबंधित महिला को जीवनपर्यंत अपने इच्छाओं का दमन करना पडता है, समाजिक अत्याचार और शोषण का शिकार होना पडता है। समाजिक रिवाज के नाम पर विधवा महिलाओं के साथ हो रही कृत्य केवल समाजिक बुराई मात्र ही नही है जिसे हमें जल्द ही रोकना चाहिए, बल्कि यह संबंधित महिला के साथ अत्याचार, प्रताडना और अमानवीय कृत्य है। कल तक जब समाज का अधिकांश सदस्य अशिक्षित था तब तक ऐसे कृत्य को समाजिक नियम और रितिरिवाज के नाम पर बर्दास्त किया जाता रहा है। परन्तु अब समाज शिक्षित है और वह अच्छे-बूरे का ज्ञान रखती है। इसलिए ऐसी व्यवस्थाओं को तत्काल समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
समाजिक नियम के नाम पर हम अपनी माताएं, बहनें, बेटियों, बहुएं और पत्नी के साथ हम कितना अत्याचार कर रहे हैं? क्या हमें ऐसी अमानवीय सामाजिक नियम को तत्काल समाप्त नही कर देना चाहिए?
आपसे अनुरोध है आइये सकारात्मक पहल करें ताकि हमारी माताएं, बहनें, बेटियों, बहुएं और पत्नी विधवा होने के स्वाभीमानपूर्ण जीवन जी सकें। विधवा महिलाओं को अत्याचार और अमानवीय शोषण से मुक्त करने में आपका योगदान आवश्यक है।
कुछ प्रश्न ???
- अगले जन्म में यदि आप विधवा हुए तो क्या आप इसे बर्दास्त करेंगे?
- क्या ऐसे समाजिक नियमों का काई औचित्य है? जिसमें हम किसी के साथ अमानवीय अत्याचार करते हों।
एचपी जोशी
अटल नगर, रायपुर